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कविता

13 मई 2015

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कुछ न कहना, भी कुछ कहने जैसा ही है | प्यार मोहब्बत अपनापन, अब सपने जैसा है | राम कहानी सबकी सुनते, कितना कुछ तो बीत गया | वक़्त मिले तो कभी अकेले, सोच की तू भी कैसा है | माना हमने वक्त बुरा है, और घर से रोज निकलना है | आँगन में एक तुलसी रखना ,माँ के आँचल जैसा है |

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