कविता
कुछ न कहना, भी कुछ कहने जैसा ही है |
प्यार मोहब्बत अपनापन, अब सपने जैसा है |
राम कहानी सबकी सुनते, कितना कुछ तो बीत गया |
वक़्त मिले तो कभी अकेले, सोच की तू भी कैसा है |
माना हमने वक्त बुरा है, और घर से रोज निकलना है |
आँगन में एक तुलसी रखना ,माँ के आँचल जैसा है |