मन के भावों को शब्दों में पिरोकर सृजन करने का एक अलग ही आनंद है। सामान्यतः यह मानी जाती है कि रचनाएं कवि की कल्पना मात्र होती है, लेकिन सच तो ये है कि कवि अपनी कल्पनाओं में भी उसी हकीकत का जिक्र करता है , जो वो जीता है अर्थात् जो वह अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में अपनें आस पास देखता है। *बह जाने दो अश्कों को* """""""""""""""""""""""""""""" तुझसे लड़ के खिलौने छीने, और खुशियां बांट ली आज रोते- रोते कह रहा छोड़ मुझे क्यों जा रही........१ ये "जीवन- पथ" घनघोर है उसमें अकेला मैं खड़ा कि, हाथ में उन धागों की अब है कमी खलने लगी......२ वक़्त तनहा कट जाएगा तेरी यादों के सहारे पर हों तो कोई साथी भी संग गुफ्तगू करने लिए........३ जिंदगी सूना तू कर गई कहके ' जहां ' के खेल यही उन आसूंओं का क्या होगा? जो तेरी यादों में झड़ रही.....४ फिर तूने कहा - अच्छा है बह जाने दो अश्कों को बचपन के उन झगडों का मैं हिसाब बराबर कर रही....५ :- रौशन कुमार "प्रिय"