मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना है
खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है
नव कोंपल उस पल पेड़ों पर आते हैं
पात पुरातन जड़ से जब झड़ जाते हैं
जैविक घटकों में हैं ऐसे जीवाणू
मिट कर खुद जो दो बन कर मुस्काते हैं
दंश नहीं मानो, खोना अवसर समझो
यही शाश्वत सत्य चिरंतन माना है
बचपन जाता है यौवन के उद्गम पर
पुष्प नष्ट होता है फल के आगम पर
छूटेंगे रिश्ते, नाते, संघी, साथी
तभी मिलेगा उच्च शिखर अपने दम पर
कुदरत भी बोले-बिन, बोले गहरा सच
तम का मिट जाना ही सूरज आना है
कुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
समय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब
दुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग में निश्चित जाना है
खो कर ही इस जीवन में ...