इंसानियत का झंडा कब से यहाँ खड़ा है ...
बीठें पड़ी हुई हैं, बदरंग हो चुका है
इंसानियत का झंडा, कब से यहाँ खड़ा है
सपने वो ले गए हैं, साँसें भी खींच लेंगे
इस भीड़ में नपुंसक, लोगों का काफिला है
सींचा तुझे लहू से, तू मुझपे हाथ डाले
रखने की पेट में क्या, इतनी बड़ी सजा है
वो काट लें सरों को, मैं चुप रहूँ हमेशा
सन्देश क्या अमन का, मेरे लिए बना है
क्यों खौलता नहीं है, ये खून बाजुओं में
क्या शहर की जवानी, पानी का बुलबुला है
बारूद कर दे इसको, या मुक्त कर दे इससे
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है
(तरही गज़ल ...)