जहाँ बिकता हुआ ईमान होगा
बगल में ही खड़ा इंसान होगा
हमें मतलब है अपने आप से ही
जो होगा गैर का नुक्सान होगा
दरिंदों की अगर सत्ता रहेगी
शहर होगा मगर शमशान होगा
दबी सी सुगबुगाहट हो रही है
दीवारों में किसी का कान होगा
बड़ों के पाँव छूता है अभी तक
मेरी तहजीब की पहचान होगा
लड़ाई नाम पे मजहब के होगी
मगर तकसीम हिंदुस्तान होगा
स्वप्न मेरे ...: मगर तकसीम हिंदुस्तान होगा ...