ठँडी मीठी छाँव कभी तीखा “सन” है
जीवन आपा-धापी “एजिटे-शन” है
इश्क़ हुआ तो बस झींगालाला होगा
“माइंड” में कुछ ऐसा ही “इम्प्रे-शन” है
मिलने पर तो इतने तल्ख़ नहीं लगते
पर “सोशल” मंचों पर दिखती “टेन्शन” है
बतलाता है अब “इस्टेटस” “सेल्फी” का
खुश है बच्चा या कोई “डिप्रे-शन” है
नव नूतन चन्दन वंदन है अभिनन्दन
विजय पर्व है जब जीता अभिनन्दन है
आधा खाली है तो आधा भरा हुआ
खाली का बस खाली-पीली कृन्दन है
“ट्वीटर” “इन्स्टाग्राम” “फेसबुक” है गुरुकुल
ज्ञान पेलता गहरा अविरल चिंतन है
कभी “डिसीसिव” और कभी है “इन्क्लूसिव”
राजनीति में “टाइम” “ओबज़र्वे-शन” है
आशिक, उल्लू, शोदा, पागल, “लवर” गधा
एक ही शब्द समूह “महा-गठबंधन” है