घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है
हर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है
पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध है
रूई के तकिये, रज़ाई, चादरें
खेस है जिसमें के माँ की गन्ध है
ताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँ
जंग लगी छर्रों की इक बन्दूक है
घर मेरा टूटा ...
"शैल्फ" पे चुप सी कतारों में खड़ी
अध्-पड़ी कुछ "बुक्स" कोनों से मुड़ी
पत्रिकाएँ और कुछ अख़बार भी
इन दराजों में करीने से जुड़ी
मेज़ पर है पैन, पुरानी डायरी
गीत उलझे, नज़्म, टूटी हूक है
घर मेरा टूटा ....
ढेर है कपड़ों का मैला इस तरफ
चाय के झूठे हैं "मग" कुछ उस तरफ
फर्श पर है धूल, क्लीनिंग माँगती
चप्पलों का ढेर रक्खूँ किस तरफ
जो भी है, कडुवा है, मीठा, क्या पता
ज़िन्दगी का सच यही दो-टूक है
घर मेरा टूटा ...
जो भी है जैसा भी है मेरा तो है
घर मेरा तो अब मेरी माशूक है
घर मेरा टूटा ...
स्वप्न मेरे ...: घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है ...