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स्वप्न मेरे ...: कहानी प्रेम की? हाँ ... नहीं ...

1 अप्रैल 2017

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वो एक ऐहसास था प्रेम का जिसकी कहानी है ये ... जाने किस लम्हे शुरू हो के कहाँ तक पहुंची ... क्या साँसें बाकी हैं इस कहानी में ... हाँ ... क्या क्या कहा नहीं ... तो फिर इंतज़ार क्यों ...


हालांकि छंट गई है तन्हाई की धुंध

समय के साथ ताज़ा धूप भी उगने लगी है

पर निकलने लगे हैं यादों के नुकीले पत्थर

जहाँ पे कुछ हसीन लम्हों की इब्तदा हुई थी


गुलाम अली की गज़लों से शुरू सिलसिला

शेक्सपीयर के नाटकों से होता हुवा

साम्यवाद के नारों के बीच

समाजवाद की गलियों से गुज़रता

गुलज़ार की नज्मों में उतर आया था


खादी के सफ़ेद कुर्ते ओर नीली जीन के अलावा

तुम कुछ पहनने भी नहीं देतीं थीं उन दिनों

मेरी बढ़ी हुई दाड़ी ओर मोटे फ्रेम वाले चश्में में

पता नहीं किसको ढूँढती थीं


पढ़ते पढ़ते जब कभी तुम्हें देखता

दांतों में पेन दबाए मासूम चेहरे को देखता रहता

नज़रें मिलने पर तुम ऐसे घबरातीं

जैसे कोई चोरी पकड़ी गई

फिर अचानक मेरा माथा चूम

कमरे से बाहर

जब ज़ोर ज़ोर से हंसती

तो आते जातों की नज़रों में

अनगिनत सवाल नज़र आते थे मुझे


मैं तो उन दिनों समझ ही नहीं पाता था

ये प्यार है के कुछ ओर ...

हालांकि मैंने ... दीन दुनिया से बेखबर

सब कुछ बहुत पहले से ही तुम्हारे नाम कर दिया था


फिर वक़्त ने करवट बदली

रोज़ रोज़ का सिलसिला हफ़्तों और महीनों में बदलने लगा

एक जीन ओर कुछ खादी के कुर्तों के सहारे

मैंने तो जिंदगी जीने का निश्चय कर ही लिया था

पर शायद तुम हालात का सामना नहीं कर सकीं


तुम्हारे चले जाने के बाद वो तमाम रास्ते

नागफनी से चुभने लगे थे

रुके हुवे लम्हों की नमी में काई सी जमने लगी थी

अजीब सी बैचैनी से दम घुटने लगा था


खुद को हालात के सहारे छोड़ने से बैहतर

कोई ओर रास्ता नज़र नहीं आया था मुझे


धीरे धीरे वक़्त के थपेड़ों ने

दर्द के एहसास में खुश रहने का ढब समझा दिया


मुद्दत बाद आज फिर

उम्र के इस मुकाम पे वक़्त की इस बे-वक्त करवट ने

तेरे शहर की दहलीज पे ला पटका है

तेरी यादों के नुकीले पत्थर दर्द तो दे रहे हैं

पर आज धूप की चुभन

पुराने लम्हों का एहसास लिए

मीठी ठंडक का एहसास दे रही है


क्या तुम भी गुज़रती हो कभी इन लम्हों के करीब से


स्वप्न मेरे ...: कहानी प्रेम की? हाँ ... नहीं ...

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मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

क्या तुम भी गुज़रती हो इन लम्हों के करीब से,.....स्वप्न मेरे....: कहानी प्रेम की? हाँ ...नहीं...,....वाह क्या बात है सर आपकी,...बहुत बढ़िया|

1 सितम्बर 2017

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत ही कमाल और भावनात्मक ... ब्बहुत खूब

6 जुलाई 2017

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मगर तकसीम हिंदुस्तान होगा ...

6 अगस्त 2016
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जहाँ बिकता हुआ ईमान होगाबगल में ही खड़ा इंसान होगाहमें मतलब है अपने आप से हीजो होगा गैर का नुक्सान होगादरिंदों की अगर सत्ता रहेगीशहर होगा मगर शमशान होगादबी सी सुगबुगाहट हो रही हैदीवारों में किसी का कान होगाबड़ों के पाँव छूता है अभी तकमेरी तहजीब की पहचान होगालड़ाई नाम पे

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इंसानियत का झंडा कब से यहाँ खड़ा है ...

27 अगस्त 2016
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इंसानियत का झंडा कब से यहाँ खड़ा है ...बीठें पड़ी हुई हैं, बदरंग हो चुका है इंसानियत का झंडा, कब से यहाँ खड़ा हैसपने वो ले गए हैं, साँसें भी खींच लेंगेइस भीड़ में नपुंसक, लोगों का काफिला हैसींचा तुझे लहू से, तू

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हो गए हैं सब सिकन्दर इन दिनों ...

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उग रहे बारूद खन्जर इन दिनों हो गए हैं खेत बन्जर इन दिनोंचौकसी करती हैं मेरी कश्तियाँहद में रहता है समुन्दर इन दिनोंआस्तीनों में छुपे रहते हैं सबलोग हैं कितने धुरन्धर इन दिनोंआदतें इन्सान की बदली हुईंशहर में रहते हैं बन्दर इन दिनोंआ गए पत्थर

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स्वप्न मेरे ...: अम्मा का दिल टूट गया ...

8 नवम्बर 2016
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पुरखों का घर छूट गयाअम्मा का दिल टूट गयादरवाज़े पे दस्तक दीअन्दर आया लूट गयामिट्टी कच्ची होते हीमटका धम से फूट गयामजलूमों की किस्मत हैजो भी आया कूट गयासीमा पर गोली खानेअक्सर ही रंगरूट गयापोलिथिन आया जब सेबाज़ारों से जूट गया ...

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आशा का घोड़ा ...

2 अगस्त 2019
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आशा की आहट का घोड़ासरपट दौड़ रहासुखमय जीवन-हार मिलासाँसों में महका स्पंदनमधुमय यौवन भार खिलानयनों में सागर सनेह कासपने जोड़ रहा सरपट दौड़ रहा ...खिली धूप मधुमास नयाखुले गगन में हल्की हल्कीवर्षा का आभास नयामन अकुलाया हरी घास परझटपट पौड़ रहासरपट दौड़ रहा ...सागर लहरों क

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घास उगी सूखे आँगन ...

5 अगस्त 2019
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धड़ धड़ धड़ बरसा सावनभीगे, फिसले कितने तनघास उगी सूखे आँगनप्यास बुझी ओ बंजर धरती तृप्त हुईनीरस जीवन से तुलसी भी मुक्त हुई,झींगुर की गूँजे गुंजनघास उगी ...घास उगी वन औ उपवनगीले

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पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...

2 सितम्बर 2019
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धूल कभी जो आँधी बन के आएगीपल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगीअक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगाबीज नई आशा के मन में बोयेगाखींच लिए जायेंगे जब अवसर साधनसपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगीपल दो पल फिर ...बादल बूँदा बाँदी कर उड़ जाएँगेचिप चिप कपडे जिस्मों से जुड़ जाएँगेचाट के ठेले जब

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एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ ...

10 सितम्बर 2019
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मैं कई गन्जों को कंघे बेचता हूँएक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँकाटता हूँ मूछ पर दाड़ी भी रखता और माथे के तिलक तो साथ रखता नाम अल्ला का भी शंकर का हूँ लेताहै मेरा धंधा तमन्चे बेचता हूँएक सौदागर हूँ ...धर्म का व्यापार मुझसे पल रहा हैदौर अफवाहों का मुझसे चल रहा है यूँ नहीं

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घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है ...

2 अक्टूबर 2019
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घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक हैहर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध हैरूई के तकिये, रज़ाई, चादरें खेस है जिसमें के माँ की गन्ध हैताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँजंग लगी छर्रों की इक बन्दूक हैघर मेरा टूटा ..."शैल्फ" पे चुप सी कतारों में खड़ी अध्-पड़ी

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खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है ...

10 अक्टूबर 2019
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मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना हैखो कर ही इस जीवन में कुछपाना हैनव कोंपल उसपल पेड़ों पर आते हैंपात पुरातन जड़से जब झड़ जाते हैं जैविक घटकोंमें हैं ऐसे जीवाणू मिट कर खुद जोदो बन कर मुस्काते हैं दंश नहीं मानो,खोना अवसर समझो यही शाश्वतसत्य

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रात की काली स्याही ढल गई ...

31 अक्टूबर 2019
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दिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईदिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईसो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़ेऔर छोटे थे उनींद

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जीवन आपा-धापी “एजिटे-शन” है ...

5 नवम्बर 2019
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ठँडी मीठी छाँवकभी तीखा “सन” है जीवन आपा-धापी“एजिटे-शन” है इश्क़ हुआ तो बसझींगालाल

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स्वप्न मेरे: हमारी नाव को धक्का लगाने हाथ ना आए

26 नवम्बर 2019
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लिखे थे दो तभीतो चार दाने हाथ ना आएबहुत डूबेसमुन्दर में खज़ाने हाथ ना आएगिरे थे हम भीजैसे लोग सब गिरते हैं राहों मेंयही है फ़र्क बसहमको उठाने हाथ ना आएरकीबों ने तोसारा मैल दिल से साफ़ कर डाला समझते थे जिन्हेंअपना मिलाने हाथ ना आएसभी बचपन कीगलियों में गुज़र कर देख आया हूँकई कि

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इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या ...

6 जुलाई 2020
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यूँ ही मुझको सता रही हो क्या तुम कहीं रूठ कर चली हो क्या उसकी यादें हैं पूछती अक्सर मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या ज़िन्दगी मुझसे अजनबी हो क्या वक़्त ने पूछ ही लिया मुझसे बूढ़े बापू की तुम छड़ी हो क्या तुमको महसूस कर रहा हूँ मैं माँ कहीं आस पास ही हो क्या दर्द से पूछने लगी खुशिय

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