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दिगम्बर नासवा के बारे में

बचपन फरीदाबाद, १६ वर्ष दुबई, जीवन के अनुभव को http://swapnmere.blogspot.com में कहने का प्रयास.

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दिगम्बर नासवा के लेख

इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या ...

6 जुलाई 2020
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यूँ ही मुझको सता रही हो क्या तुम कहीं रूठ कर चली हो क्या उसकी यादें हैं पूछती अक्सर मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या ज़िन्दगी मुझसे अजनबी हो क्या वक़्त ने पूछ ही लिया मुझसे बूढ़े बापू की तुम छड़ी हो क्या तुमको महसूस कर रहा हूँ मैं माँ कहीं आस पास ही हो क्या दर्द से पूछने लगी खुशिय

स्वप्न मेरे: हमारी नाव को धक्का लगाने हाथ ना आए

26 नवम्बर 2019
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लिखे थे दो तभीतो चार दाने हाथ ना आएबहुत डूबेसमुन्दर में खज़ाने हाथ ना आएगिरे थे हम भीजैसे लोग सब गिरते हैं राहों मेंयही है फ़र्क बसहमको उठाने हाथ ना आएरकीबों ने तोसारा मैल दिल से साफ़ कर डाला समझते थे जिन्हेंअपना मिलाने हाथ ना आएसभी बचपन कीगलियों में गुज़र कर देख आया हूँकई कि

जीवन आपा-धापी “एजिटे-शन” है ...

5 नवम्बर 2019
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ठँडी मीठी छाँवकभी तीखा “सन” है जीवन आपा-धापी“एजिटे-शन” है इश्क़ हुआ तो बसझींगालाल

रात की काली स्याही ढल गई ...

31 अक्टूबर 2019
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दिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईदिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईसो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़ेऔर छोटे थे उनींद

खो कर ही इस जीवन में कुछ पाना है ...

10 अक्टूबर 2019
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मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना हैखो कर ही इस जीवन में कुछपाना हैनव कोंपल उसपल पेड़ों पर आते हैंपात पुरातन जड़से जब झड़ जाते हैं जैविक घटकोंमें हैं ऐसे जीवाणू मिट कर खुद जोदो बन कर मुस्काते हैं दंश नहीं मानो,खोना अवसर समझो यही शाश्वतसत्य

घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक है ...

2 अक्टूबर 2019
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घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक हैहर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध हैरूई के तकिये, रज़ाई, चादरें खेस है जिसमें के माँ की गन्ध हैताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँजंग लगी छर्रों की इक बन्दूक हैघर मेरा टूटा ..."शैल्फ" पे चुप सी कतारों में खड़ी अध्-पड़ी

एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ ...

10 सितम्बर 2019
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मैं कई गन्जों को कंघे बेचता हूँएक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँकाटता हूँ मूछ पर दाड़ी भी रखता और माथे के तिलक तो साथ रखता नाम अल्ला का भी शंकर का हूँ लेताहै मेरा धंधा तमन्चे बेचता हूँएक सौदागर हूँ ...धर्म का व्यापार मुझसे पल रहा हैदौर अफवाहों का मुझसे चल रहा है यूँ नहीं

पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...

2 सितम्बर 2019
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धूल कभी जो आँधी बन के आएगीपल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगीअक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगाबीज नई आशा के मन में बोयेगाखींच लिए जायेंगे जब अवसर साधनसपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगीपल दो पल फिर ...बादल बूँदा बाँदी कर उड़ जाएँगेचिप चिप कपडे जिस्मों से जुड़ जाएँगेचाट के ठेले जब

घास उगी सूखे आँगन ...

5 अगस्त 2019
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धड़ धड़ धड़ बरसा सावनभीगे, फिसले कितने तनघास उगी सूखे आँगनप्यास बुझी ओ बंजर धरती तृप्त हुईनीरस जीवन से तुलसी भी मुक्त हुई,झींगुर की गूँजे गुंजनघास उगी ...घास उगी वन औ उपवनगीले

आशा का घोड़ा ...

2 अगस्त 2019
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आशा की आहट का घोड़ासरपट दौड़ रहासुखमय जीवन-हार मिलासाँसों में महका स्पंदनमधुमय यौवन भार खिलानयनों में सागर सनेह कासपने जोड़ रहा सरपट दौड़ रहा ...खिली धूप मधुमास नयाखुले गगन में हल्की हल्कीवर्षा का आभास नयामन अकुलाया हरी घास परझटपट पौड़ रहासरपट दौड़ रहा ...सागर लहरों क

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