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नवगीत

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नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल,नेह हृदय कुछ बोल रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरे,जैसे सबकुछ भूल रहा था।अम्बर पर बदरी छाई थी,दुख की गठरी लादे भागे।नयनों से सावन बरसे थाप्यासा मन क्यों तरस रहा था।खोया-खोया जीवन मेराचातक बन कर तड़प रहा था।तिनका-तिनका दुख में मेरेजैसे सब कुछ भ

मन की बंजर भूमि पर,कुछ बाग लगाए हैं !मैंने दर्द को बोकर,अपने गीत उगाए हैं !!!रिश्ते-नातों का विष पीकर,नीलकंठ से शब्द हुए !स्वार्थ-लोभ इतना चीखे किस्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !आँधी से लड़कर प्राणों के,दीप जलाए हैं !!!मैंने दर्द को बोकर अपने....अपनेपन की कीमत देनी,होती है अब अपनों को !नैनों में आने को, रिश

दिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईदिन उगा सूरज की बत्ती जल गईरात की काली स्याही ढल गईसो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़ेऔर छोटे थे उनींद

मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना हैखो कर ही इस जीवन में कुछपाना हैनव कोंपल उसपल पेड़ों पर आते हैंपात पुरातन जड़से जब झड़ जाते हैं जैविक घटकोंमें हैं ऐसे जीवाणू मिट कर खुद जोदो बन कर मुस्काते हैं दंश नहीं मानो,खोना अवसर समझो यही शाश्वतसत्य

घर मेरा टूटा हुआ सन्दूक हैहर पुरानी चीज़ से अनुबन्ध है पर घड़ी से ख़ास ही सम्बन्ध हैरूई के तकिये, रज़ाई, चादरें खेस है जिसमें के माँ की गन्ध हैताम्बे के बर्तन, कलेंडर, फोटुएँजंग लगी छर्रों की इक बन्दूक हैघर मेरा टूटा ..."शैल्फ" पे चुप सी कतारों में खड़ी अध्-पड़ी

नेत्र भर आए और होंठ हँसते रहे,प्रेम अभिनय से तुमको,कहाँ छ्ल सका?दो नयन अपनी

मैं कई गन्जों को कंघे बेचता हूँएक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँकाटता हूँ मूछ पर दाड़ी भी रखता और माथे के तिलक तो साथ रखता नाम अल्ला का भी शंकर का हूँ लेताहै मेरा धंधा तमन्चे बेचता हूँएक सौदागर हूँ ...धर्म का व्यापार मुझसे पल रहा हैदौर अफवाहों का मुझसे चल रहा है यूँ नहीं

धूल कभी जो आँधी बन के आएगीपल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगीअक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगाबीज नई आशा के मन में बोयेगाखींच लिए जायेंगे जब अवसर साधनसपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगीपल दो पल फिर ...बादल बूँदा बाँदी कर उड़ जाएँगेचिप चिप कपडे जिस्मों से जुड़ जाएँगेचाट के ठेले जब

आशा की आहट का घोड़ासरपट दौड़ रहासुखमय जीवन-हार मिलासाँसों में महका स्पंदनमधुमय यौवन भार खिलानयनों में सागर सनेह कासपने जोड़ रहा सरपट दौड़ रहा ...खिली धूप मधुमास नयाखुले गगन में हल्की हल्कीवर्षा का आभास नयामन अकुलाया हरी घास परझटपट पौड़ रहासरपट दौड़ रहा ...सागर लहरों क

कभी अलविदा ना कहना तुम मेरे साथ यूँ ही रहना तुम !तुम बिन थम जाएगा साथी ,मधुर गीतों का ये सफर ;रुंध कंठ में दम तोड़ देगें -आत्मा के स्वर प्रखर ;बसना मेरी मुस्कान में नित ना संग आंसुओं के बहना तुमतुम ना होंगे हो जायेगी गहरीभीतर की तन्हाईयां-टीसती विकल करेंगीयादों की ये परछाईयां-गहरे भंवर में संताप के -

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दुःख,व्यथा,क्षोभ ही नहीं भरा बस विरह, क्रोध ही नहीं धरा मकरंद मधुर उर भीत सुनो जीवन का छम-छम गीत सुनो ज्वाला में जल मिट जाओगे गत मरीचिका आज लुटाओगे बनकर मधुप चख लो पराग कुछ क्षण का सुरभित रंग-राग अंबर से झरता स्नेहप्रीत सुनो कल-कल प्रकृति का गीत सुनो क्यूँ उर इतना अवसाद भरा? क्यूँ तम का गहरा गाद

नए वर्ष का नया ये गीतमिलकर बांटे सबको प्रीत |आपस में अब सौहार्द बढ़ाये गीत सभी अब अमन के गाएँ | जीवन में रस ख़ुशी के घोलें सबसे मीठी बानी बोलें |कष्ट सभी के हो सके दूर मानवता सबमे हो भरपूर |झगड़े झं

"नवगीत" रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो, बढ़ा न देना उठे कदम नप जाएगी सारी धरती कदम कदम यदि उठे कदम युद्ध तीसरा कैसा होगा याद करो श्री शिव त्रि नयन मत दो आमंत्रण बीरों को मत ललकारों उठें कदम.....रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो कदम उठाया था रावण ने जब अपने ही हठ धर्मी का याद करो वह

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