जब भी रात में अकेला होता हूँ ,खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !
दिल और दिमाग के सारे दर्द बयां कर देता हूँ !!
खुली सड़क के भी दर्द होते है ,उन्हें हवा की सरसराहट से सुन लेता हूँ !
यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !!
खुली सड़क भी दिलासा देती है ,उन्हें हवा की सरसराहट से सुन लेता हूँ !
यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !!
खुली सड़क भी मुझे भविष्य निर्माण की ओर अग्रसर कर देती है !
यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !!
ये कहानी नई नहीं है ,ये मेरे जीवन चक्र को दोहराती है !
यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !!
जब भी रात में अकेला होता हूँ ,खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !
दिल और दिमाग के सारे दर्द बयां कर देता हूँ !!
प्रेषक -**सुमित शर्मा
इंदौर