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खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !

25 सितम्बर 2015

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जब भी रात में अकेला होता हूँ ,खुली सड़क पर निकल जाता हूँ ! दिल और दिमाग के सारे दर्द बयां कर देता हूँ !! खुली सड़क के भी दर्द होते है ,उन्हें हवा की सरसराहट से सुन लेता हूँ ! यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !! खुली सड़क भी दिलासा देती है ,उन्हें हवा की सरसराहट से सुन लेता हूँ ! यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !! खुली सड़क भी मुझे भविष्य निर्माण की ओर अग्रसर कर देती है ! यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !! ये कहानी नई नहीं है ,ये मेरे जीवन चक्र को दोहराती है ! यूँही रात को खुली सड़क पर निकल जाता हूँ !! जब भी रात में अकेला होता हूँ ,खुली सड़क पर निकल जाता हूँ ! दिल और दिमाग के सारे दर्द बयां कर देता हूँ !! प्रेषक -**सुमित शर्मा इंदौर
वर्तिका

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सुन्दर रचना!

25 सितम्बर 2015

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