लोकतंत्र में जनता द्वारा जनप्रतिनिधि चुनने का काम किया जाता है। लेकिन जनता का जनप्रतिनिधि वैसे लोग बन जाते है, जो मात्र15 से 20% वोट ही हासिल कर पाते है। मताधिकार का प्रयोग आधे मतदाता करते ही नहीं है। आधे करते है तो उसका 20% पाकर जनप्रतिनिधि बनना दुर्भाग्य पूर्ण है। क्योंकि किसी भी परीक्षा में पूर्णांक एवं प्राप्तांक प्रतिशत कम से कम 30% पास होने के लिए रहता है। लेकिन जनप्रतिनिधि चुनने के लिए इसकी भी अनिवार्य ता नहीं है। सफल लोकतंत्र में आधे से एक मत अधिक का शर्त अनिवार्य होना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं है। यह अधूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। यह भी गलत है। हजारों दल है। चुनाव के वक्त ये सभी खड़े होकर वोट को अपने पारस में करने के लिए विभिन्न प्रकार की। रणनीति अपनाते है। वोट का विखंडन होता है और हारने वाले जीत जाते है और जीतने वाले हार जाते है। सफल लोकतंत्र के लिए यह घातक है। अपराधिक मामलों में संलिप्त व्यक्ति भी चुनाव जीत कर जनप्रतिनिधि बन जाते है। फिर अपराध और राजनीति दोनों का संचालन किया करते है। सदन में काम भी प्रभावित होता है। लोकतंत्र में। शिक्षा रूपी मापदंड नहीं हो ने के कारण मूर्ख व्यक्तिभी जनप्रतिनिधि बनने का मौका पा लेता है। जानकारी के अभाव में वह सही गलत की पहचान किए बगैर ही काम करता है। लोकतंत्र की परिभाषा इसलिए अपने उद्देश्य से भटक रहा है। लोकतंत्र में जनता का शासन कहने भर के लिए है। जनप्रतिनिधि योग्य नहीं चुने जाने पर अधिकारियों के बूते पर काम होता है। अफसरशाही चरम पर पहुंच जाता है। जनप्रतिनिधि की नहीं सुनी जाती है। फिर जनता का शासन की बात बेईमानी है। आइए सफल लोकतंत्र के लिए इन भान्तियों को दूर कर अपने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद करें। लोकतंत्र में अपनी भलाई के लिए बदलाव करें और सफल लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए आवाज बुलंद करें।