ये कहानी एक ऐसे भिक्षुक लड़की की है जो परिस्थितिवश मां बनती है ...
इस कहानी की मुख्य पात्र ऐसी एक लड़की है जो दिन में कहीं न कहीं हमसे आप से सबसे टकराती ही है ....इस कहानी का उद्देश्य है की ऐसे लोगों की जितना हो सके सहयोग करें..
**अपनी समीक्षा से मुझे अनुग्रहित करें..सादर🙏🙏...(राकेश पाण्डेय)
कहानी:- मातृत्व
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मालती को ठीक से पता नही था की उसका जन्म कब और कहाँ हुआ?
उसने जब से होश सम्भाला तब से खुद को सड़कों पर भिखारियों के साथ भिक्षा मांगते पाया।
जब जहां जो मिल गया खा लिया और सड़क के किनारे सो गयी... जैसे बाकी भिक्षुक करते हैं।
जब तक वह छोटी थी तब तक तो उसे आसानी से भिक्षा मिल जाती थी । अब उसकी आयु लगभग 16-17 बर्ष की हो चली थी। यौवन का वसन्त तो सब पर आता है उसपर भी आया। अब वरिष्ठ उसे भिक्षा देने से कतराते थे तो नवजवान उसके शरीर के नापतोल में लग जाते, थे जो उसे नागवार गुजरता। अब उसके लिए यह दुस्सह हो गया था ।
उसके समूह में एक वरिष्ठ भिक्षुक थी जिसका नाम तो किसी को पता न था, पर सारे भिक्षुक उसे माई कहकर सम्बोधित करते थे । मालती रात को उसके सिरहाने बैठ गयी बूढ़ी ने पूछा,' "क्या हुआ मालती'?
माई अब कोई भीख देता नही या तो लोग कहते है की काम करो या फिर .....?
अब तू ही बता हम खाएंगे क्या?,
बुढ़िया कुछ देर बिचारमग्न होकर फिर बोली इसका तो एक ही उपाय है कि कहीं से एक बच्चा ले आ तो तुझे अच्छे से भीख मिलेगी।
अब मालती को ये बात तो जम गयी पर बच्चा मिले कहाँ इसी उधेड़बुन में कई बार उसने बच्चा चुराने को सोचा पर डर के मारे हिम्मत नही हुयी...
एक दिन भोर में दैनिक क्रिया के लिए जाते समय सड़क से सटे झाड़ी में किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनायी दी..मालती कौतुक बस वहां तक पहुंच गयी। वहां देखा कि अभी अभी जन्मी बच्ची किसी ने वहां फेक दी है।
...अक्सर जब प्रेम का भूत उतर जाता है तो उसकी निशानियां सड़कों के किनारे मिलती है। पता नही कितना कलेजा लाती होगी वह मां की किसी नन्ही जान को 9 महीने अपने खून से सींचने के बाद उसे इस तरह फेक दे।
या फिर ऐसा समाज जो आज भी बेटे की ख्वाहिश रखता है और बेटी तज्य होती है उसके लिया पाप की यह अनन्त पराकाष्ठा भी कम है वह स्त्री जो ससुराल में जला दी जाती है उसे केवल एक बार जलना पड़ता है।.. किन्तु जिस माँ से उसके बच्चे को छीन लिया जाता है वो दिन- दिन जलती है।
खैर वजह जो भी रहा हो मालती के तो खुशी का ठिकाना न रहा उसे उठाया और सीने से लगा लिया जो बच्ची लगातार रोये ज रही थी एक स्त्री के गोद का एहसास होते ही वो चुप हो गयी।
उस दिन से मालती का दिन उसी के साथ सुरु होता और समाप्त भी उसी के साथ ..धीरे-धीरे अपनी दुख परेशानी वो भूलती जा रही थी उसकी दुनिया उसी के आसपास सिमटकर रह गयी थी।
....उसने भले ही लोभ में आकर उसे अपनाया था पर उसके साथ उसके अंदर अब मातृत्व के गुण विकशित हो रहे थे।
.....आज तीन चार दिन से मालती भिक्षा के लिए नही जा पायी थी उसकी बेटी को बुखार आ रहा था दो बार सरकारी अस्पताल से दवा ला चुकी थी।..पर उन नीले पीले दवाओ का कोई असर उसपर नही हुआ बेटी लगातार रोये जा रही थी। और उसका कलेजा फटा जा रहा था उसपर वह भूखी भी थी दूध का एक बूंद सुबह से उसके पेट में नही गयी थी।
मालती पास ही दुकानदार के यहाँ बेटी को लेकर पहुंची और याचना करते बोली की बाबूजी सुबह से मेरी बेटी भूखी है मुझे दूध दे दो,
दुकानदार ने झिड़क दिया इधर बेटी बुखार से तप रही ऊपर से भूख से लगातार रोये जा रही ....
बड़ा ही विचित्र है यह समाज जो ईश्वर सम्पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करता है उस ईश्वर के मंदिर में बाल्टी के बाल्टी दूध उड़ेल देगा पर एक भूखी बालिका को देने के लिए आज उसके पास एक छटाक दूध नही है । धिक्कार है ऐसे समाज को धिक्कार है ऐसी सभ्यता को।
पर जब मालती से बर्दास्त न हुआ तो वो पुनः दुकानदार से याचना करने लगी.." बाबूजी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ! कहो तो कोई काम कर दूँ पर थोड़ा सा दूध दे दो"
दुकानदार के बार - बार मना करने पर भी जब मालती न हटी तो वो बिगड़कर बोला..."तू जाती है की जबर्दस्ती हटाऊँ"
मालती फिर गिड़गिड़ा कर बोली "बाबूजी, थोड़ा सा देदो नही तो मेरी बेटी मर जायेगी"
"मर जायेगी तो मैं क्या करूँ " दुकान दार झिड़ककर बोला,
बाबूजी ऐसा न कहो भगवान ने आपको तो सब कुछ दे रखा है एक छटाक दूध में कुछ कम न हो जायेगा"...
दुकानदार को गुस्सा आ गया.."चल निकल यहां से इसके बाप को क्यों नही बोलती है, है भी ! की पता ही नही है"
मालती निसहाय हो गयी इतनी विवश की उसे अपने आप पर ही लज्जा आने लगी..
उसके समझ नही आ रहा था की क्या करे। यही होता है मातृत्व आज जिस कन्या को अपने पोषण का आधार बनाकर लायीं थी उसी कन्या के पोषण के लिए समाज में संघर्ष कर रही थी।
जब उसके समझ में कुछ नही आया तो उसने बालिका को बहकाने के लिए आँचल से ढककर अपना स्तन उसके मुख में पकड़ा दिया ।। बालिका को संतुष्टि मिल गयी और उसने रुदन कम कर दिया। मातृत्व के लिए कोई आवश्यक नही है की जन्म ही दिया जाये ये सानिध्य में भी उर्वरित हो जाती है मालती उसके सिर को सहलाती रही और बालिका स्तनपान करती रही।
कहते है की ईश्वर सबको भोजन देता है और वो सबकुछ देखता है और किसी का भी अपने पर विश्वास डिगने नही देता । मालती को अपने स्तन कुछ गीले प्रतीत हुये उसने हाथ लगाकर देखा तो दूध की धार निकल रही है। उसके आंखों से आँसूँ छलक कर गिरने लगे आज वो पूरी तरह मां बन गयी।
......आज उसने दृढ़ निश्चय कर लिया की कल से वो घरों में काम करेगी पर भिक्षा नही मांगेगी और अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर आगे काबिल बनायेगी.....
......राकेश पाण्डेय