कहानी-- नचिकेता
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एक, मनोरम निर्झरणी के समीप फैली हरियाली के मध्य, एक सुन्दर कुटी बनी हुई थी। जिसमे आज विशेष हलचल थी। ऋषि, ऋषि कुमार, सहायक , परिचायक एवं आस-पास के कुछ जंगल निवासी। सबके सब व्यस्त , काफी गहमा-गहमी थी। कुटी को केले के पत्तों एवं फूलों से सजाया जा रहा था। आम की लकड़ियां एवं हवन-संविधा को तैयार किया जा रहा था। कुछ बालक इसका आनंद ले रहे थे, कुछ असंयत थे क्योंकि उनके पालक उनपर ध्यांन नही दे रहे।
किन्तु एक बालक अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से इन सबका अवलोकन कर रहा था। उसने कई लोगों से पूछा ; पर किसी ने उसपर ध्यान नही दिया।
जब रात्री में सब कार्य बन्द कर,लोगों के विश्राम का समय आया, तो उस बालक ने आश्रम के एक परिचारिका से पूछा, "शारदा, आज इतनी तैयारी किसलिये हो रही है?, कोई उत्सव है क्या?"
शारदा- नचि बेटा, "आपके पिता महाऋषि वाजश्रवस ने, 'विश्वजित' नामक यज्ञ का अनुष्ठान किया है"
नचिकेता:- "ये कैसा यज्ञ होता है?"
शारदा:- "इसमे अपनी समस्त सम्पत्ति एवं प्रिये वस्तुओं का दान कर दिया जाता है"
नचिकेता:-"दान क्यों किया जाता है?"
शारदा:- "मोहमाया एवं सांसारिक वस्तुओं के प्रति स्वं को उदासीन करके, स्वं के जन्म मरण से मुक्त करने का साधन है दान"
नचिकेता:- "ये जन्म-मरण क्या होता है?"
शारदा:- थोड़ी विचलित होती हुई, 'नचि' तुम कितने प्रश्न करते हो, हर प्रश्न का उत्तर देना सम्भव नही है"
नचिकेता:-"अच्छा ये बताओ, ये दान लेता कौन है?"
शारदा:- "गरीब ब्राह्मण, भिक्षुक और निर्धन"
नचिकेता:- "पर ये क्यों लेते हैं?, क्या इनको सांसारिक मोह माया से मुक्त नही होना है?
शारदा अब और विचलित हो गयी,उससे और प्रश्न का उत्तर न दिया गया।
इसके बाद नचिकेता और कई लोगों से अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करता रहा, किसी ने कुछ प्रश्न के उत्तर दिये किसी ने नकार दिया।
भोर से ही पुरी कुटी वैदिक मन्त्रों से गूंजने लगी, आहुति से उठने वाला धुआं स्वर्ग के देवताओं को शक्ति प्रदान कर रहा था। हर तरफ मंगल ही मंगल हो रहा था। कुटिया के बाहर निर्धन,ब्राह्मण, एवं भिक्षुक का जमावड़ा लग गया था।
महाऋषि कई दिन तक अपनी सम्पत्ति दान करते रहे, अंत में आश्रम के गायों का अवसर आया....
बालक नचिकेता सभी क्रियाकलापों को बड़े ध्यान से देख रहा था। जब गाय दान होने लगी तो नचिकेता ने देखा उसमे ज्यादातर गायें बूढ़ी हैं, जिसे लेने वाले की केवल हानि ही होगी,
इससे तो मेरे पिता का यज्ञ निष्फल हो जायेगी।
वह अपने पिता के पास पहुंचा...
नचिकेता:- "पिताजी, आप बूढ़ी एवं बेकार गायों का दान क्यों कर रहे हो?"
ऋषि:- "बेटा, क्योंकि मैंने अपनी समस्त सम्पत्ति दान करने की प्रतिज्ञा ली है"
नचिकेता:- "किन्तु ,बेकार गाय लेने वालों की हानि होगी जिससे वो आप को श्राप देंगे और आपकी मुक्ति का मार्ग बाधित होगा"
ऋषि:- "पर बेटा, मैंने शपथ ली है अपनी समस्त सम्पत्ति दान करने की, उसमे ये गायें भी आती हैं"
नचिकेता:- "तो, पिताजी हम भी आपकी सम्पत्ति एवं आत्मीय हैं मुझे किसे दान करोगे"
महाऋषि ने कोई उत्तर न दिया और अपने कार्य में लग गये। परन्तु बालक बार-बार पूछता रहा। व्यस्तता और परिश्रम से खिन्न महाऋषि को बालक की उदंडता पसन्द न आयी और झुंझलाकर बोले--" जा मैं तुम्हे यम को देता हूँ"
वो कहकर आपने कार्य में व्यस्त हो गये और इधर बालक तैयार होकर अपने पिता के सन्मुख उपस्थिति हो गया।
"पिता जी आज्ञा दें"
"किसकी आज्ञा?"ऋषी ने विस्मय से पूछा,
"यमलोक जाने के लिये" नचिकेता ने दृढ़ता से जवाब दिया।
पिता को अपनी त्रुटि का आभाष हो गया, और ये भी पता था की नचिकेता बहुत ही हठी एवं तर्कशील बालक है, फिरभी उन्होंने बालक को समझाते हुये कहा...."नचि पुत्र, वो तो मैंने ऐसे ही क्रोध में कह दिया था"
पिता जी, आपने यज्ञ के बेदी पर बैठ कर मुझे यम को दान दिया है, अब यदि आप इससे विमुख होते हैं तो आप का यज्ञ निष्फल हो जायेगा, जिससे आप नर्क के भागी होंगे।
"क्या तुम जानते हो पुत्र?, यम कौन हैं?,
वो मृत्यु के देवता हैं, जिन्हें सशरीर कोई न पा सका है। वें मृत्यु उपरान्त ही मिलते हैं"
ऋषि ने व्यथित हृदय से कहा,
नचिकेता:- तात, यदि आप पुत्र मोह में अपने वचन से फिरते हैं तो आप इस जन्म में पाप के भागी होंगे, और यदि मैं मृत्यु के भय से आपके वचन पालन में असमर्थ होता हूँ तो मैं जन्मों-जन्म तक नर्क में वास करूँगा"
"तात ,आपके तरह मैं तो ज्ञानी नही हूँ, किन्तु इतना जानता हूँ कि आप ने जो संकल्प लिया है उसे पूर्ण करना मेरा कर्तव्य है"
जब किसी भी प्रकार से नचिकेता को ऋषि न समझा सके तो उसे यमपुरी जाने की आज्ञा दे दी....
नचिकेता ने सुन रखा था की दक्षिण दिशा, मृत्यु की दिशा होती है, इसलिये वो उसी दिशा में निकल पड़ा, कई दिन-कई रात लगातार बिना विश्राम, बिना भोजन के वो चलता रहा।
आकाश मार्ग से विचरण कर रहे नारद ने जब देखा की एक बालक, जिसके चेहरे पर अलौकिक तेज है, यमलोक की तरफ बढ़ रहा है, तो उनको अचरज हुआ.....
'नारायण-नारायण' "बालक, तुम कौन हो?और कहाँ जा रहे हो? कही रास्ता तो नही भटक गये!"
नचिकेता:- "प्रणाम मुनिवर, मेरा नाम ' 'नचिकेता' है मेरे पिता का नाम बाजश्रवस है, जिसने विश्वजित नाम यज्ञ किया है, उसमे मुझे मेरे पिता ने यम को दान किया है। अतः मैं पिता के आज्ञा से यम के धाम जा रहा हूँ"
नारद जी को बड़ा आश्चर्य हुआ! उन्होंने कहा "पुत्र, तुम अत्यन्त थके हुये हो, सामने एक विशालकाय वृक्ष है, उसके नीचे बैठकर विश्राम कर लेते हैं, और कुछ बातें भी कर लेंगे"
"नही मुनिवर,मुझे शीघ्र-अतिशीघ्र यमलोक पहुंचना है अतः आप से अनुरोध है की आप अपने रास्ते के लिये प्रस्थान करें और मुझे जाने दें"
नचिकेता ने चलते-चलते कहा,
नारद जी ने मन ही मन प्रसन्न होते हुये बालक से बोले," पुत्र मैं भी तो यमपुरी ही जा रहा था तो दोनो साथ में चलते हैं"
"किन्तु पुत्र, क्या तुम्हे ज्ञात है कि, व्यक्ति यमलोक मृत्यु के पश्चात जाता है।"
"क्यों मुनिवर"
"क्योंकि जब व्यक्ति की मृत्यु होती है, तब जीवात्मा शरीर को छोड़ देती है, तब शरीर नष्ट हो जाता है,और जीवात्मा यमलोक को जाती है।"
नचिकेता के लिये ये बातें नयी थी। उसकी जिज्ञासा प्रबल हो गयी।
"मुनिवर, ये आत्मा क्या होती है?उसका शरीर से किस प्रकार का सम्बन्ध होता है?"
मुनिश्रेष्ठ को नन्हे बालक से इस प्रकार के प्रश्न की अपेक्षा न थी। उनके समझ में न आया की इस गूढ़ प्रश्न का बालक को क्या उत्तर दूँ।
"पुत्र ,जैसे हम अपने पुराने वस्त्र जो मैले या दोषयुक्त हो जाते हैं, उनका त्याग कर नूतन वस्त्र धारण करते हैं। उसी प्रकार जीवात्मा भी जर-जर शरीर का त्याग कर पुनः नये शरीर को धारण करती है"
"फिर यमलोक में जीवात्मा के साथ क्या होता है" बालक ने प्रश्न किया,
पुत्र जैसे हमारे पालक हमे कुछ कार्य देते हैं। तत्पश्चात उसकी समीक्षा करते हैं की कार्य पूर्ण हुआ की नही, उसके पश्चात कार्य की गुणवत्ता के आधार पर हमे पुरस्कृत या दंडित किया जाता है। उसी प्रकार ईश्वर सभी जीवात्मा को एक प्रयोजन देकर मृत्युलोक पर भेजता है उसके उन्ही कार्यों का लेखा-जोखा यमलोक में होता है।"
"पर मुनिवर,क्या जीवात्मा भी अच्छी बुरी होती है। क्योंकि मृत्युलोक में सभी मनुष्य की श्रेष्ठता भिन्न है। तो क्या ये भिन्नता जीवात्मा के आधार पर होती है या फिर कोई अन्न कारण"
देवऋषि को ज्ञात हो गया की किसी बड़े जिज्ञासु से पाला पड़ा है । इसकी जिज्ञासा जितना शांत करूँगा वो उतनी ही बढ़ती जायेगी।
पुत्र हम यमपुरी पैदल चलकर पहुंच न पाएंगे, इसलिये मैं तुम्हे आकाश मार्ग से यमलोक के द्वार तक छोड़ देता हूँ। बाकी उसके अंदर बिना यमदेव के अनुमति के प्रवेश नही कर पावोगे।
मुनिश्रेष्ठ ने बालक को द्वार पर छोड़ा और बिना विलंब किये वहां से विदा हो लिये।
.....
जब द्वारपालों ने देखा की, एक बालक सशरीर यमलोक में प्रवेश कर रहा है,तो उसे रोक लिया।
"ठहर जा बालक, तू अंदर नही जा सकता" द्वारपाल ने गरजकर कहा।
नचिकेता...ने अपने पिता के संकल्प से लेकर यज्ञ तक की सारी वृतान्त सुनायी, तथा यमदेव से मिलाने का आग्रह किया।
किन्तु यमदेव यमलोक में नही थे, और बिना उनकी अनुमति के प्रवेश सम्भव न था, इसलिये बालक द्वार पर ही प्रतीक्षा करने लगा।
तीन दिन पश्चात जब यमदेव लौटे तब द्वारपालों से नचिकेता के आगमन का उद्देश्य जाना....
यमदेव-"पुत्र मैं तुम्हारी पितृभक्ति एवं दृढ़ता से अत्यन्त प्रसन्न हूँ, यद्यपि तुम तीन दिन से यम द्वार पर, बिना अन्न जल के पड़े रहे इसके बदले में मैं तुम्हे तीन वर देने का वचन देता हूँ"
नचिकेता-"देव मुझे मेरे पिता ने आपको दान स्वरूप दिया है, इसलिये मैं आपका सेवक हूँ, अतः मैं यहीं रहकर आप की सेवा करूँगा"
यमदेव बालक की निष्ठा देखकर अभिभूत होकर बोले-
"पुत्र मैं अभी इसी समय से तुम्हे अपने दासत्व से मुक्त करते हुये, तुम्हे तीन वर देने का वचन देता हूँ"
नचिकेता प्रसन्न होकर-" प्रथम वर, स्वरूप में मुझे दीजिये कि मैं जब वापस जाऊँ तो मेरे पिता मुझे प्रसन्न होकर गले लगा लें,
दूसरा वर में, मुझे आत्मा और शरीर का ज्ञान दीजिये।
तीसरे वर में, मुझे जीवन और मृत्यु के रहस्य को बतायें...
इस प्रकार के वर की अपेक्षा बालक से न थी, यमदेव को। उन्होंने ने बालक को नाना प्रकार का प्रलोभन दिया की इसके बदले में लेलो, किन्तु बालक जानता था की जीवन में सब नश्वर है तो वो अपने दृढ़ता से एक इंच न हिला।
अंत में विवश होकर यमदेव ने नचिकेता को वो रहस्य बताया जिसे देवता भी नही जानते...
कभी-कभी विस्मय होता है की इतनी कम उम्र का बालक इतना जिज्ञासुं कैसे हो सकता है। किन्तु उसका यही साहस आज उसे अमर किये हुये है...
नचिकेता के कथा का उल्लेख महाभारत में एवं कठौपनिषद में मिलता है। हम ये कह सकते हैं की पुरातन इतिहास का प्रथम जिज्ञासु बालक था नचिकेता।।
साभार.....कठौपनिषद
विकिपीडिया,
नोट-शारदा एवं नारद जी का पात्र बालक के चरित्र को विस्तार देने के लिये गढ़ा गया है किन्तु उद्देश्य कहानी ने छेड़छाड़ करने का बिल्कुल नही है....
संकलन-राकेश पाण्डेय