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मदिरा

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सवैया "मदिरा" मापनी -- 211/211/211/211/211/211/211/2"छंद मदिरा सवैया"नाचत गावत हौ गलियाँ प्रभु गाय चरावत गोकुल में।रास रचावत हौ वन में क्यों धूल उड़ावत गोधुल में।।जन्म लियो वसुदेव घरे मटकी लुढ़कावत हौ तुल में।मोहन मोह मयी मुरली मन की ममता महके मुल में।।-1आपुहिं आपु गयो तुम माधव धाम बसा कर छोड़ गए।का ग

छंद - " मदिरा सवैया " (वर्णिक ) *शिल्प विधान सात भगण+एक गुरु 211 211 211 211 211 211 211 2 भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भा"छंद मदिरा सवैया" वाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना।मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।।नाचत गावत लाल लली, छुपि पाँव महावर का रँगना।भूलत भान बुझावत हौ

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