छंद - " मदिरा सवैया " (वर्णिक ) *शिल्प विधान सात भगण+एक गुरु 211 211 211 211 211 211 211 2 भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भा
"छंद मदिरा सवैया"
वाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना।
मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।।
नाचत गावत लाल लली, छुपि पाँव महावर का रँगना।
भूलत भान बुझावत हौ, कस नारि दुलारि रह ना ढँगना।।-1
राग लगावत हौ उठि कै, तड़फावत हौ सखि साजनवा
आपुहि आपु न मोर नचै, बदरी बरखा लखि सावनवा
कोयल रात कहाँ कुँहके, कब गावत दादुर आँगनवा
धीरज राखहु हे ललिता, बनि आवत साजन पाहुनवा।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी