सवैया "मदिरा" मापनी -- 211/211/211/211/211/211/211/2
"छंद मदिरा सवैया"
नाचत गावत हौ गलियाँ प्रभु गाय चरावत गोकुल में।
रास रचावत हौ वन में क्यों धूल उड़ावत गोधुल में।।
जन्म लियो वसुदेव घरे मटकी लुढ़कावत हौ तुल में।
मोहन मोह मयी मुरली मन की ममता महके मुल में।।-1
आपुहिं आपु गयो तुम माधव धाम बसा कर छोड़ गए।
का गति आज भई यमुना जल मीन पिलाकर मोड़ गए।।
लागत नीक न शोभत साधक साधु बनाकर जोड़ गए।
आपु भले अपना समझे पर प्रीत पढ़ाकर तोड़ गए।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी