इस पुस्तक में महेश कुमार वर्मा द्वारा लिखित कविताओं का संकलन किया गया है।
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होती थी यह वर्षों पहले जब दिवाली में जलते थे दिये पर अब चाहे हो जैसे दिवाली में जलते हैं पैसे छोड़ते हैं बम-पटाखे और छोड़ते हैं रॉकेट फैलाते है प्रदुषण बढ़ाते हैं बीमारी चाहे हो जैसे पर दिवाल