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मां का आंचल

30 अक्टूबर 2021

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छूट गया था वह आंचल,
उन नन्हे हाथों से।

रूठ गया था वह बचपन,
बिन मां के साथो से।

क्या खेल था वह किस्मत का?
या वक्त बुरा हमारा था!
पर बीन मां के बचपन बीते यह ईश्वर को ना गवारा था।

ईश्वर ने खिला दिया वो फूल जो मुरझाया था,
दे दिया फिर वह आंचल जो हो गया पराया था।

लोगों ने सोचा कि क्या अपनी मां बन पाएगी?
या फिर यह भी "सौतेली" ही कहलायेगी?

फिर उस मां ने प्यार बहुत लुटाया था,
उन बच्चों के सर पर फिर 'मां का आंचल' लहराया था।

प्यार के साथ आगे बढ़ते वह सौतेला शब्द छूट गया
फिर बच्चों ने बचपन पाया जो सब ने सोचा कि शायद अब उठ गया।🙏

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रेणु

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पर बीन मां के बचपन बीते यह ईश्वर कृपया इसमें बीन को बिन करलें 🙏🙏

18 नवम्बर 2021

रेणु

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बहुत ही सुन्दर और प्यारी सी कविता है आपकी सुमन जी। बिन मां के बच्चों की मां बनकर आई एक स्नेहा को प्राय सौतेलेपन की कसौटी पर परखा जाता हैं, पर सच्चे वात्सल्य की पहुंच आखिर अबोध हृदयों में अपनी पैठ बना ही लेते हैं।सहृदयता से स्वीकारें तो रिश्तों की फसल लहलहाते देर नहीं लगती। सस्नेह शुभकामनाए और बधाई आपको।

18 नवम्बर 2021

Suman

Suman

18 नवम्बर 2021

बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏

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