धर्म चिड़िया का,
खुशी के गीत गाना !
धर्म नदिया का,
तृषा सबकी बुझाना ।
धर्म दीपक का,
हवाओं से ना डरना !
धर्म चंदा का,
सभी का ताप हरना ।।
किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?
धर्म तारों का,
तिमिर में जगमगाना !
धर्म बाती का,
स्वयं जल,तम मिटाना ।
धर्म वृक्षों का,
जुड़े रहना मृदा से !
धर्म फूलों का,
सुरभि अपनी लुटाना ।।
किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?
धर्म चींटी का,
बताना मर्म श्रम का !
धर्म सूरज का,
अधिक ना तप्त होना ।
धर्म सागर का,
रहे सीमा में अपनी !
धर्म मेघों का,
बरसकर रिक्त होना ।।
किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?
धर्म पर्वत का,
अचल रहना हमेशा !
धर्म ऋतुओं का,
धरा को रंग देना ।
धर्म धरती का,
उठाना भार सबका !
धर्म नभ का है,
विहग को पंख देना ।।
किंतु हे मानव !
तुम्हारा धर्म क्या है ?
--- मीना शर्मा ---