साँझ - बेला
विदा ले रहा दिनकर
पंछी सब लौटे घर,
तरूवर पर अब उनका
मेेला है !
दीप जले हैं घर - घर
तुलसी चौरे, मंदिर,
अंजुरि भर सुख का ये
खेला है !
रात की रानी खिली
कौन आया इस गली,
संध्या की कातर-सी
बेला है !
मिल रहे प्रकाश औ' तम
किंतु दूर क्योंकर हम,
भटकता है मन कहीं
अकेला है !
विरह - प्रणय का संगम
नयन हुए फिर से नम,
फिर वही बिछोह का दुःख
झेला है !