मन की बंजर भूमि पर,
कुछ बाग लगाए हैं !
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!
रिश्ते-नातों का विष पीकर,
नीलकंठ से शब्द हुए !
स्वार्थ-लोभ इतना चीखे कि
स्नेह-प्रेम निःशब्द हुए !
आँधी से लड़कर प्राणों के,
दीप जलाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
अपनेपन की कीमत देनी,
होती है अब अपनों को !
नैनों में आने को, रिश्वत
देती हूँ मैं सपनों को !
साँसों पर अभिलाषाओं के
दाँव लगाए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर अपने....
नेह गठरिया बाँधे निकला,
कौन गाँव बंजारा मन !
जाना कहाँ, कहाँ जा पहुँचा,
ठहर गया किसके आँगन !
पागल प्रीत लगा ना बैठे,
लोग पराए हैं !!!
मैंने दर्द को बोकर,
अपने गीत उगाए हैं !!!