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मरहठा छंद "कृष्ण लीलामृत"

2 अगस्त 2021

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मरहठा छंद "कृष्ण लीलामृत"


धरती जब व्याकुल, हरि भी आकुल, हो कर लें अवतार।

कर कृपा भक्त पर, दुख जग के हर, दूर करें भू भार।।

द्वापर युग में जब, घोर असुर सब, देन लगे संताप।

हरि भक्त सेवकी, मात देवकी, सुत बन प्रगटे आप।।


यमुना जल तारन, कालिय कारन, जो विष से भरपूर।

कालिय शत फन पर, नाचे जम कर, किया नाग-मद चूर।।

दावानल भारी, गौ मझधारी, फँस कर व्याकुल घोर।

कर पान हुताशन, विपदा नाशन, कीन्हा माखनचोर।।


विधि माया कीन्हे, सब हर लीन्हे, गौ अरु ग्वालन-बाल।

बन गौ अरु बालक, खुद जग-पालक, मेटा ब्रज-जंजाल।।

ब्रह्मा इत देखे, उत भी पेखे, दोनों एक समान।

तुम प्रभु अवतारी, भव भय हारी, ब्रह्म गये सब जान।।


ब्रज विपदा हारण, सुरपति कारण, आये जब यदुराज।

गोवर्धन धारा, सुरपति हारा, ब्रज का साधा काज।

मथुरा जब आये, कुब्जा भाये, मुष्टिक चाणुर मार।

नृप कंस दुष्ट अति, मामा दुर्मति, वध कर दी भू तार।।


शिशुपाल हने जब, अग्र-पूज्य तब, राजसूय था यज्ञ।

भक्तन के तारक, दुष्ट विदारक, राजनीति मर्मज्ञ।।

पाण्डव के रक्षक, कौरव भक्षक, छिड़ा युद्ध जब घोर।

बन पार्थ शोक हर, गीता दे कर, लाये तुम नव भोर।।


ब्रज के तुम नायक, अति सुख दायक, सबका देकर साथ।

जब भीड़ पड़ी है, विपद हरी है, आगे आ तुम नाथ।।

हे कृष्ण मुरारी! जनता सारी, विपदा में है आज।

कर जोड़ सुमरते, विनती करते, रखियो हमरी लाज।

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मरहटा छंद विधान -


यह प्रति पद कुल 29 मात्रा का छंद है। इसमें यति विभाजन 10, 8,11 मात्रा का है।

मात्रा बाँट:-

प्रथम यति 2+8 =10 मात्रा

द्वितीय यति 8,

तृतीय यति 8+3 (ताल यानि 21) = 11 मात्रा

अठकल की जगह दो चौकल लिये जा सकते हैं। अठकल चौकल के सब नियम लगेंगे।

4 पद सम तुकांत या दो दो पद समतुकांत। अंत्यानुप्रास हो तो और अच्छा।

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