उल्लाला छंद (माँ और उसका लाल)
एक भिखारिन शीत में, बस्ते में लिपटाय के।
अंक लगाये लाल को, बैठी है ठिठुराय के।।
ममता में माँ मग्न है, सोया उसका लाल है।
माँ के आँचल से लिपट, बेटा मालामाल है।।
चिथड़ों में कुछ काटते, रक्त जमाती रात को।
या फिर ताप अलाव को, गर्माहट दे गात को।।
कहीं रिक्त हैं कोठियाँ, सर पे कहीं न छात है।
नभ के नीचे ही कटे, ग्रीष्म, शीत, बरसात है।।
जीवन अपने मार्ग को, ढूँढे हर हालात में।
जीने की ही लालसा, स्फूर्ति नई दे गात में।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया