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उड़ियाना छंद "विरह"

21 अप्रैल 2021

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उड़ियाना छंद "विरह"


क्यों री तू थमत नहीं, विरह की मथनिया।

मथत रही बार बार, हॄदय की मटकिया।।

सपने में नैन मिला, हँसत है सजनिया।

छलकावत जाय रही, नेह की गगरिया।।


गरज गरज बरस रही, श्यामली बदरिया।

झनकारै हृदय-तार, कड़क के बिजुरिया।।

ऐसे में कुहुक सुना, वैरन कोयलिया।

विकल करे कबहु मिले, सजनी दुलहनिया।।


तेरे बिन शुष्क हुई, जीवन की बगिया।

बेसुर में बाज रही, बैन की मुरलिया।।

सुनने को विकल श्रवण, तेरी पायलिया।

तेरी ही बाट लखे, सूनी ये कुटिया।।


विरहा की आग जले, कटत न अब रतिया।

रह रह मन उठत हूक, धड़कत है छतिया।।

'नमन' तुझे भेज रहा, अँसुवन लिख पतिया।

बेगी अब आय मिलो, सुन मन की बतिया।।

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उड़ियाना छंद *विधान*


22 मात्रा का सम मात्रिक छंद। 12,10 यति। अंत में केवल 1 गुरु; यति से पहले त्रिकल आवश्यक।मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+1+1+2

चार चरण, दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

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