ग्रंथि छंद (गीतिका, देश का ऊँचा सदा, परचम रखें)
2122 212, 2212
देश का ऊँचा सदा, परचम रखें,
विश्व भर में देश-छवि, रवि सम रखें।
मातृ-भू सर्वोच्च है, ये भाव रख,
देश-हित में प्राण दें, दमखम रखें।
विश्व-गुरु भारत रहा, बन कर कभी,
देश फिर जग-गुरु बने, उप-क्रम रखें।
देश का गौरव सदा, अक्षुण्ण रख,
भारती के मान को, चम-चम रखें।
आँख हम पर उठ सके, रिपु की नहीं,
आत्मगौरव और बल, विक्रम रखें।
सर उठा कर हम जियें, हो कर निडर,
मूल से रिपु-नाश का, उद्यम रखें।
रोटियाँ सब को मिलें, छत भी मिले,
दीन जन की पीड़ लख, दृग नम रखें।
हम गरीबी को हटा, संपन्न हों,
भाव ये सारे 'नमन', उत्तम रखें।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया