मर्यादा पुरुषोत्तम.
(पाठकों से अनुरोध है कि अपने विचार बेबेक रखें और चर्चा
करें. ताकि कुछ सीखा भी जा सके.)
रावण ने सीता को हरकर,
जो किया, किया.
लेकिन तुम थे - सियाराम,
सीता के राम,
तुम सीता को प्राणों से प्यारे थे,
सीता भी तुमको प्राणों से प्यारी थी.
सीता को वापस पाने को तुमने,
कितने कष्ट उठाए,
वन - वन भटके और शबरी के
झूठे बेर भी खाए.
सुग्रीव संग पाने को
धोखे से मारा बाली को .
इन सबसे परिलक्षित होता है,
सीता से प्यार तुम्हारा.
सीता को वापस लाने में,
जल गई स्वर्ण की लंका,
नहीं उसे पा पाओगे,
यह कभी नहीं थी शंका.
फिर सर्व - सँहार के बाद हुआ,
क्यों तिरस्कार सीता का ?
अग्नि परीक्षा बाद उसे स्वीकारा,
क्या ऐसा है धर्म तुम्हारा?.
किसने रोका था तुमको,
सीता को अपनाने से?
किसने टोका था तुमको
सीता को अयोध्या लाने में?
फिर राज सभा में,
एक रजक के कहने से,
राज धर्म की खातिर
परित्याग सीता का ?
क्या इतना ही विश्वास तुम्हारा सीता पर?
क्या इतना ही विश्वास अग्नि परीक्षा पर?
जग कहता तुमको मर्यादा पुरुषोत्तम,
पुरुषों में उत्तमता की
मर्यादा या
पुरुषों की मर्यादा
में उत्तम ?
तुमको मानवता से
राजकाज प्यारा था.
इसीलिये रत राजकाज में,
सीता को अस्वीकारा था.
कहाँ गया वह मानव धर्म ?
जिसका परित्याग किया
था,
राजधर्म के खातिर,
क्यों त्याग किया ना
राज ?
सीता संग फिर से चल
पड़ते वनवास.
तब साख तुम्हारी बनती,
तब तुम बोलो,
मैं भी ऐसा क्यों कहता,
मैं भी गीत तुम्हारे गाता,
तेरे पुरुषोत्तम होने
का ही दम भरता.
रंगराज अयंगर.
माड़भूषि रंगराज अयंगर की अन्य किताबें
Madabhushi Rangraj Iyengar-माड़भूषि रंगराज अयंगर
जन्म 13 अक्तूबर, 1955 को आँध्रप्रदेश के जिला पश्चिम गोदावरी के एक छोटे से गाँव पेंटापाडु में हुआ। दादाजी और पिताजी की नौकरीवश बचपन बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में बीता। फलस्वरूप शालेय पढ़ाई, बी एस सी और अभियाँत्रिकी की शिक्षा भी बिलासपुर में ही हुई। बाद में नौकरी के दौरान दिल्ली से प्रबंधन में डिप्लोमा किया।
शालेय शिक्षा के दौरान 13 वर्ष की उम्र (सन् 1968) में पहली कविता ‘ताजमहल’ लिखी गई, जिसे मेरी अनुजा ने स्टेज पर पढ़ा और उसे बहुत सराहना मिली। यही सराहना धीरे-धीरे मेरी अन्य रचनाओं का कारण बनीं। घर पर पिताजी को साहित्य का शौक था। शायद उसी का असर है कि मुझे साहित्य में रुचि हुई।
वर्ष 1982 में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में नौकरी शुरू हुई। उस दौरान कार्यालय की विभिन्न गृह पत्रिकाओं में मेरी कविता प्रकाशित होती रही। इसके अलावा नागपुर और राजकोट में रेलवे की गृह पत्रिकाओं में भी मेरी कविताओं का प्रकाशन हुआ। नराकास (नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति) राजकोट, वड़ोदरा और नागपुर की पत्रिकाओं में भी मेरी रचनाएं प्रकाशित हुईं। गुजरात के समाचार पत्र और वाराणसी के एक प्रकाशन से भी मेरी रचना प्रकाशित हो चुकी है।
अनुशासनिक बंधनों की वजह से नौकरी के दौरान पुस्तक प्रकाशन की ओर ध्यान नहीं गया। वर्ष 2015 में इंडियन ऑयल से सेवानिवृत्ति के बाद प्रकाशन की पुरजोर सोच आई। अब तक मेरी निम्न पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
1- दशा और दिशा (विविध रचनाएँ)
2- मन दर्पण (कविता)
3- हिंदी प्रवाह और परिवेश (हिंदी भाषा संबंधी लेख)
4- अंतस के मोती (बहन उमा के साथ कहानी और लेखों का संकलन)
5- गुलदस्ता (समसामयिक लेख)
6- ओस की बूंदें (श्रीमती मीना शर्मा जी के साथ साझा कविता संग्रह)
इन पुस्तकों के साथ-साथ मेरी रचनाएँ मेरे ब्लॉग laxmirangam.blogspot.com, Pratilipi.com, shabd.in & HindiKunj.com पर देखी जा सकती हैं।
मातृभाषा तेलुगु है और साथ ही साथ हिंदी, बंगाली, असमिया, पंजाबी, गुजराती और अंग्रेजी ठीक-ठाक बोल-पढ़-लिख लेता हूँ। टूटी-फूटी तामिल कन्नड़ और मराठी भी आती है। विशेष रुचि के कारण, लेखन हिंदी में ही होता है। वैसे साहित्य में रुचि के कारण किसी भी भाषा के साहित्य को पढ़ने का शौक रखता हूँ।
लेखन के अलावा कैरम मेरा दूसरा शौक है। इसमें मैंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी अंपायरिंग किया है।
माड़भूषि रंगराज अयंगर (एम आर अयंगर)
सिकंदराबाद, तेलंगाना।
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