shabd-logo

एकान्तर कथा - राधे का बैंक खाता.

17 मई 2016

333 बार देखा गया 333

कथा- राधे का बैंक खाता



श्रीनिवासन शहर के एक प्रतिष्ठित रईस थे. उनके पास कई बंगले, कारखाने व और व्यापार थे.

वे अपने इकलौते बेटे राधे को संसार की सारी सुविधाएँ मुहैया कराना चाहते थे. उनका मन था कि चाहे मजबूरी में या फिर शौक से ही सही, उनके बेटे को कभी कोई काम करना ना पड़े. यानी नो नौकरी नो पेशा ओन्ली मौज मस्ती. यही ध्यान में रखकर उनने एक दिन एक बेशुमार एकमुश्त दौलत बैंक के एक नए खाते में डाला और शाम को घर जाकर अपने इकलौते पुत्र को उस खाते का गोल्ड डेबिट कार्ड थमाया. साथ में हिदायत भी दी कि इस खाते में बेशुमार दौलत है जिसे जानने की तुमको जरूरत नहीं है. हाँ खाते में अब कोई रकम नहीं डल पाएगी और यह भी कि किसी भी तरह से खाते की रकम का ज्ञान उसे नहीं हो पाएगा. श्रीनिवासन ने बैंक में खास हिदायत दे रखी थी कि किसी भी तरह से खाते की रकम की जानकारी कभी भी राधे को प्राप्त न हो. वह जितना चाहे खर्च करे बेफिक्र होकर जिंदगी भर के लिए निश्चिंत रहे.



बस अब क्या था . सारे रोक टोक खत्म हो चुके थे. राधे की जिंदगी में अचानक अनचाही मस्ती आ गई. आए दिन दोस्तों के साथ महफिल सजती खाते पीते और शौक फरमाते. हाँलाँकि राधे के पास की बुरी आदत या लत नाम की कोई चीज नहीं थी, किंतु दोस्त थे कि खर्च करवाने में माहिर थे.



कुछ समय बाद राधे को अपनी जिंदगी खुशी खुशी जीते देख कर एक दिन पिता श्रीनिवासन निश्चिंत हो गए और ठान लिया कि अब वे खुशी खुशी भौतिक जिंदगी से दूरबगवत आरादना में मग्न हो सकते हैं. बस और क्या था, सब कुछ  लोगों को दान देकर, राधे को छोड़कर न जाने कहाँ चले गए. राधे की माता का तो उसके बचपन में ही देहाँत हो चुका था. श्रीनिवासन का भौतिकता से मन भर गया था, इसलिए वे सब कुछ त्याग कर शायद पहाड़ों पर ध्यान करने चले गए थे.



इधर राधे कुछ दिन तो पिताजी के लिए परेशान रहा, किंतु पिता के जानकारों ने जब उसे पूरी बात समझाई तो वह उन्हें भूलने लगा और अपनी मस्ती में खोता गया. दिन महीने बरस बीतते गए. खाते की रकम घटती गई. एक दिन बैंक के एक कर्मचारी ने राधे को चेताया कि इस तरह से पैसे खर्चने से कल को मुसीबत आ सकती है, क्योंकि खाते में आवक तो है ही नहीं. रकम तो घटती ही जाएगी और राधे को जिंदगी पूरी निकालनी है. यदि शादी ब्याह किया को आगे की पीढ़ी भी इसी में खाना चाहेगी. किंतु इसका राधे पर की असर नहीं पड़ा. वह अपने रास्ते उसी तरह चलता रहा.



कुछेक बरस बाद फिर बैंक वालों ने चेतावनी दी कि राधे कुछ तो हद करो. इस तरह तो कोई 25-30 सालों में खाता खाली हो जाएगा. राधे को लगा पच्चीस- तीस साल ! अभी तो बहुत समय है. तब तक ना जाने मैं रहूँगा भी कि नहीं. इसके लिए आज के मजे क्यों खोऊँ. गाड़ी अपनी रीत से पटरी पर उसी गति से दौड़ती रही. अब बैंक वाले भी सोचने लगे कि इस लड़के को चेताना किसी काम का नहीं है. वह बदलने वाला नहीं है और एक दिन हो न हो इसके सर पर मुसीबत आने वाली है.



फिर भी बैंक के एक बुजुर्ग ने सोचा कि यह अपने अजीज श्रीनिवासन का बेटा है . उनके हम पर बहुत एहसान हैं इसलिए एक बार तो मुझे राधे से बात कर लेनी चाहिए. यही सोचकर वे एक दिन राधे के पास गए और आराम से बैठकर अच्छी तरह समझाने की कोशिश की कि बेटा अब खर्चों पर कुछ लगाम कसो वर्ना तुम्हारा बुढ़ापा खतरे में पड़ सकता है. तुम काम कुछ करते नहीं हो. खाते में आवक तो बंद है. खर्चे हो रहे हैं ऐसा कब तक चलेगा. एक दिन तो खाता खाली हो जाएगा. ऐसा ना हो कि तुम्हारे जीते जी खाता खाली हो जाए. फिर तो तुम्हें जीने के लाले पड़ जाएंगे. ये जितने दोस्त आज तुम्हारे साथ मौज मस्ती कर रहे हैं सब कल को गायब हो जाएंगे.



सब कुछ सुनकर भी राधे, दूसरी कान से सब कुछ निकाल दिया. रवैया जस का तस बना रहा. अंततः एक दिन वही हुआ जिसका सबको आशा थी, डर था.  बैंक का खाता खाली हो गया और बैंक ने आगे रकम देने से मना कर दिया. राधे अब बूढ़ा होने के कगार पर था . कुछ मेहनत मजदूरी करने लायक भी नहीं रहा. अब वह पैसों के लिए दोस्तों की तरफ ताकने लगा. एकाध हफ्ते किसी दोस्त ने साथ दिया तो दूसरे हफ्ते किसी दूसरे ने. लेकिन इस तरह कब तक चलता. धीरे धीरे दोस्त कन्नी काटने लगे और राधे की दोस्तों की महफिल छोटी होती चली गई. एक दिन वह अकेला हो गया. दुनियाँ उसका मजाक उड़ाती, पर सहायता करने कोई सामने ना आता था. राधे अपने पिताजी के पुराने मित्रों की तरफ बढ़ा. कुछ सहायता तो मिली पर वह ज्यादा दिन चल नहीं सकी. हारे राधे के पास हाथ फैलाने के अलावा कोई रास्ता बचा भी नहीं था. जिस दिन भीख में कुछ मिल गया तो खा लिया वर्ना भूखा रह जाता. इसी बदनसीबी में एक दिन राधे इस संसार से विदा हो लिया.



·                                                                           *                                                                             *


हमारी हालत भी आज राधे की तरह ही है. बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपना बचपन याद करें और बालकों को चाहिए कि वे पुराने किलों व शहरों के इतिहास की तरफ ध्यान दें. किलों के अंदर पीने के पानी के इंतजामात को अच्छी तरह समझें. अच्छा हो कि शालाओं में यह पढ़ाया भा जाए. जयपुर के जयगढ़ किले में बरसात के पानी को इक्ट्टा कर इस्तेमाल करने के लिए इंतजामात किए गए हैं. ऐसा बहुत सारे किलों में मिलता है किंतु जयगढ़ का इंतजाम तो काबिल ए तारीफ ही है. कई पुराने मंदिरों में बावड़ियाँ मिलेंगी जो आज खंडहर बनकर पड़ी हैं. गुजरात में खासतौर पर बावड़ियों का तो भंडार ही है. कहने को तो धरती का 85 प्रतिशत पानी है, लेकिन शायद पीने योग्य 5 प्रतिशत ही है. फिर भी हमने बरसात के पानी को पीने योग्य बनाने की कला को क्यों नकारा ? जबकि हमारे पूर्वजों को इसका भरपूर ज्ञान था और वे इसे बहुत बड़े पैमाने पर उपयोग करते थे. हमने इसे जी भर कर नकारा. बल्कि विज्ञान को साथ लेकर ऐसा कुछ इंतजाम किया कि बरसात का पानी भूल से भी धरती पर न पड़े. खासकर शहरों में तो अंधेर मची है. कीचड़ से सबको चिढ़ है. इसलिए सभी ने अपने अहातों के सीमेंटिंग करवा लिया है. शाम को आराम कुर्सियों में बैठकर चाय पकोड़े खाने का मजा लेते हैं.



article-image

पंचायत, नगर निगम, सरकार कितना भी बोले, विज्ञापन निकाले, कानून बनाए, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. प्लाट की बाऊंडरी से बाऊंडरी तक घर की इमारत बन रही है. जो थोड़ी बहुत जगह बची तो वह सीमेंटिंग हो गई या फिर अलंकार के लिए हॉलो ब्रिक्स लगाकर रख दिए. इससे परिणाम यह हुआ कि बारिश का पानी तो मिट्टी में नहीं पड़ता वो अलग किंतु छत पर का पानी भी सीमेंट के ऊपर से बहकर बाहर निकल जाता है.



वही हाल है हमारी सोसाईटियों का जिसने सड़क के दोनों करफ के घर से घर तक यानी दीवाल से दीवाल तक (वाल टू वाल) काँक्रीट की या डामर की सड़क बनवा दी है. आजकल काँक्रीट की सड़कों का फेशन हैं कहते हैं ज्यादा चलते हैं.  घरों के अहातों से निकलकर पानी सड़क पर आता है और सड़क पर बहते बहते किसी पक्की नाली में चला जाता है . जहाँ से उसका रास्ता किसी बड़े नाले से होते हुए किसी नदी, झील या तालाब की ओर जाता है. शहरों में खास कर यह तो एक आम दृश्य है.



इन सब सुविधाओं के लिए हमने क्या किया  - बरसात के पानी का धरती मे समाने के सारे रास्ते बंद कर दिए. जिस तरह राधे के पिता श्रीनिवासन ने राधे के खाते में आवक पर रोक लगा दी थी. राधे की तरह हमें भी पता नहीं था कि बैंक में कितना पैसा है, बस खर्चते गए. भूजल दोहन में हमने वाह वाही लूट ली. आज राधे की तरह हम भी भीख माँगे पड़े हैं किंतु कोई दे सके तब ना.



नदियों में पानी कुछ पहाड़ों से आता था तो कुछ बरसात से. हमने उन पर भी बाँध बना दिए ताकि पानी आगे जा ही न सके. बाँध के पक्की नहरों से पानी खेतों में पहुँचाया, यह सोच कर कि ज्यादा से ज्यादा पानी खेतों को मिले. लेकिन यह नहीं सोचा कि बीच की सारी जमीन प्यासी रह जा रही है. इतने सालों से प्यासी धरती में भूजल कहाँ से आएगा.



दुख इस बात का होता है कि आज भी हम समझने से इंकार करते हैं कि विज्ञान को वरदान मानकर अभिशाप की तरह प्रयोग करने का ही नतीजा है कि आज हम सब पानी को तरस रहे हैं.



कम से कम अब तो सुधरें अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ इतना कोसेंगी कि नरक में भी स्थान मिलना मुश्किल हो जाएगा.

माड़भूषि रंगराज अयंगर की अन्य किताबें

शालिनी प्रसाद

शालिनी प्रसाद

बहुत बढ़िया | ये पंक्ति बहुत प्रभावशाली है ,"विज्ञान को वरदान मानकर अभिशाप की तरह प्रयोग करने का ही नतीजा है कि आज हम सब पानी को तरस रहे हैं." | सही वक़्त पर सबक लेकर हमे इस दिशा में समाधान ढूँढना चाहिए |

18 मई 2016

1

एकान्तर कथा - राधे का बैंक खाता.

17 मई 2016
0
5
1

कथा-राधे का बैंक खाता<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><!--[endif]-->श्रीनिवासन शहर के एकप्रतिष्ठित रईस थे. उनके पास कई बंगले, कारखाने व और व्यापार थे.वे अपने इकलौते बेटे राधे कोसंसार की सारी सुविधाएँ मुहैया कराना चाहते थे. उनका मन था कि चाहे मजबूरी में याफिर शौक से ही सही, उनके बेटे को कभी कोई का

2

कलुषित नव रत्न

27 मई 2016
0
1
0

कलुषितनव रत्न भारतकभी सोने की चिड़िया, रत्नों की खान और ज्ञान का सागर कहा जाता था.लेकिनहमारी जनसंख्या ने खासकर इस पर बड़ा प्रहार किया. विदेशी जो लूट गए सो तो लूट हीगए किंतु जन,संख्या की मार ने हमारे बीच ही होड़ खड़ी कर दी. संसाधनों के आभाव मेंहम स्वार्थी होते गए. दाने - दाने को तरसता गरीब अपना ईमान

3

मेरी प्रथम प्रकाशित पुस्तक - दशा और दिशा - प्रकाशक ऑनलाईन गाथा द एंडल लेस टेल्स पर बेस्ट सेलर ऑफ ईयर चुनी गई है.

27 जुलाई 2016
0
2
2
4

एक कविता रमा चक्रवर्ती भाभी जी की .... माँ.

29 सितम्बर 2016
0
3
2

एक कविता रमा चक्रवर्ती भाभीजी की.... माँ गर्भ मे पल रहे, शिशु के स्पंदन से पुलकित होती मैं माँ हूँ. प्रसव वेदना तड़पती,मृत्यु से जूझती,फिर भी संतान - आगमन का अभिनंदन करती मैं माँ हूँ. शिशु का प्रथम क्रंदन सुनअपनी पूर्णता पर इतराती,मैं माँ हूँ वक्ष के अमृत-धार से अपनी मातृ

5

द्वंद ... जारी है.

22 अक्टूबर 2016
0
3
2

द्वंद ... जारी है. राजस्थान के चाँदा गाँव में स्नेहल एक घरेलू जाना पहचाना नाम था. गाँव के कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली स्नेहल पढ़ाई में अव्वल थी. मजाल कि उसके रहते कोई कक्षा में प्रथम आने की सोच भी लेता. इसके साथ वह थी भी बला की खूबसूरत. घर- बाहर सब उसे प्यार करते थे,

6

मर्यादा पुरुषोत्तम.

28 अक्टूबर 2016
0
2
0

मर्यादा पुरुषोत्तम. (पाठकों से अनुरोध है कि अपने विचार बेबेक रखें और चर्चाकरें. ताकि कुछ सीखा भी जा सके.) रावण ने सीता को हरकर, जो किया, किया. लेकिन तुम थे - सियाराम, सीता के राम, तुम सीता को प्राणों से प्यारे थे, सीता भी तुमको प्राणों स

7

प्रणय पात्र

8 नवम्बर 2016
0
6
4

रोहित का मोबाईल फिर बजा. अब तक न जाने कितनी बार बज चुका था. इतनी बार बजने पर उसे लगा कि कोई तो किसी गंभीर परेशानी में होगा अन्यथा इतने बार फोन न करता. अनमना सा हारकर रोहित ने इस बार फोन उठा ही लिया. संबोधन किया हलो..उधर से आवाज आई...भाई साहब नमस्कार, गोपाल बोल रहा हूँ. बह

8

Laxmirangam: विधाता

3 दिसम्बर 2016
0
2
2

विधाता क्यों बदनामकरो तुम उसको,उसने पूरीदुनियां रच दी है.हम सबकोजीवनदान दियाहाड़ माँस सेभर - भर कर. हमने तो उनकोमढ़ ही दियाजैसा चाहा गढ़भी दिया,उसने तोशिकायत की ही नहींइस पर तोहिदायत दी ही नहीं। हमने तो उनको पत्थर में भीगढ़ कर रक्खा..उसने तो केवलरक्खा है पत्थरकुछ इंसानोंके सीने मेंदिल की जगह,इंसानों कोन

9

एक रात की व्यथा कथा

7 फरवरी 2017
0
6
7

एक रात की व्यथा - कथा बहुत मुश्किल से स्नेहा ने अपना तबादला हैदराबाद करवाया था चंडीगढ़ से. पति प्रीतम पहले से ही हैदराबाद में नियुक्त थे. प्रीतम खुश था कि अब स्नेहा और बेटी आशिया भी साथ रहने हैदराबाद आ रहे हैं. आशिया उनकी इकलौती व लाड़ली बेटी थी. इसलिए उसकी सुविधा का हर

10

हार का उपहार

12 फरवरी 2017
0
3
6

हार का उपहार बरसों परवानों को, दीपक कीलौ में जलते देखा है,शमा के चारों ओर पड़ेवे ढेर पतंगे देखा है. कालेज में गोरी छोरी कोघेरे छोरों को देखा है,खुद नारी नर की ओर खिंचे,ऐसा कब किसने देखा है. उसने क्या देखा, क्या जाने,किसकी उम्मीद जताती है,कहीं, ढ़ोल के भीतर पोल न हो,यह सोच न क्यों घबराती है. वह करती

11

मन दर्पण

14 फरवरी 2017
0
0
0

मेरी नई पुस्तक मन दर्पण का कवर पेज प्रस्तुत है. पुस्तक अप्रेल 2017 तक प्रकाशित हो जाएगी.

12

सँभलिए

19 फरवरी 2017
0
2
3

सँभलिए --------------- कभी कभी डर लगता है, वो प्यार न मुझसे कर बैठे, साथ मेरा ले भावुक होकर, घरवालों से ना लड़ बैठे। जो थोड़ा परिवार बचा है वह भी टूटा जाएगा, मैं हूँ अकेला, सदा अकेला, कोई मुझसे क्या कुछ पाएगा।। दोष न दे वो भले मुझे पर, खुद को माफ करूँ कैसे?

13

एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग

7 मई 2017
3
4
8

एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सबसे पहली बात - “प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन करना नहीं है, केवल सुझाव देने हैं कि पुस्तक में क्या कमियां है और उनका निराकरण कैसे किया जाए. अच्छे प्रूफ रीडर पुस्तक उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए भी सुझाव दे सकते

14

मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण का आवरण

9 मई 2017
0
2
1

ISBN 978-81-933482-3-1 गूगल सर्च कर, ऑर्डर कर सकेंगे. अभी प्री-सेल शुरु है. पुस्तक 20 मई से 1 जून के बीच प्रकाशित होने की उम्मीद है.

15

पुस्तक प्रकाशन

22 मई 2017
0
3
3

पुस्तक प्रकाशन पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार, चाहे वह कहानी कार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और, चाहेगा कि मेरी लिखी रचनाएं पुस्तक का रूप धारण करें. हाँ शुरुआती दौर में लगता है कि यह किसी के लिए

16

निर्णय ( भाग - 1)

2 जून 2017
0
0
1

निर्णय ( भाग -1)बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओंके विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एमए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँअक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्

17

निर्णय ( भाग - 2)

2 जून 2017
0
2
4

निर्णय ( भाग - 2 ) रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजनातक पहुँचाए। डर भी था कि संजना उसकी बात से नाराज हो गई तो वह उसे हमेशा के लिए हीखो देगा। वह अजब पशोपेश में पड़ा हुआ था।कॉलेज के वार्षिकोत्सव में रंजना ने कई कार्यक्रमोंमें भाग लिया था । एक नाटिका में

18

मन दर्पण

2 जून 2017
0
1
0

मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण 25 मई 2017 को प्रकाशित हो चुकी है. पाठकगण गूगल पर - ISBN 978-81-933482-3-9खोज कर ई बुक या पेपरबैक आर्डर कर सकते हैं.ईबुक की कीमत रु.100 तथा पेपरबैक की कीमत रु.175 रखी गई है.पेपरबैक पर रु 60 प्रति पुस्तक का अतिरिक्त डाक खर्च लगेगा जो

19

एक पौधा

5 जून 2017
0
3
5

पर्यावनण दिवस 5 जून के अवसर पर...एक पौधा.मधुवन मनमोहक है,चितवन रमणीय है,उपवन अति सुंदर हैऔर जीवन से ही प्रदुर्भाव है इन सबका.फिर जब जीवन के उपवन से,मधुवन के चितवन तक,हर जगह‘वन ‘ ही की विशिष्टता है.तो क्यों न हम वन लगाएँ ?आईए शुरुआत करें,और लगाएँ....एक पौधा.......

20

निर्णय

23 जून 2017
0
2
6

बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओं के विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एम ए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँ अक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्रिया ने बी

21

संप्रेषण और संवाद

26 अगस्त 2017
0
2
3

संप्रेषण और संवाद संप्रेषण और संवाद आपके कानों में किसी की आवाज सुनाई देती है. शायद कोई प्रचार हो रहा है. पर भाषा आपकी जानी पहचानी नहीं है. इससे आप उसे समझ नहीं पाते. संवाद तो प्रसारित हुआ, यानी संप्रेषण हुआ, प्राप्त भी हुआ, पर संपूर्ण नहीं हुआ क्योंक

22

Laxmirangam: ये कैसा दशहरा

3 अक्टूबर 2017
0
2
2

ये कैसा दशहरा ये कैसा दशहराआज मेरे देश में ये क्या हो रहा है.दहशत भरी है हवा में,डर लग रहा है,जगह जगह यहाँ तो रक्तपात हो रहा है. कहीं इस देश मेंइस दशहरा में रावण की जगह,शायद, राम तो नहीं जल रहा है.पता नहीं कब से,हर दशहरे रावण जल रहा है

23

डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव.

2 नवम्बर 2017
0
1
4

डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव. उस दिन मेरे मोबाईल पर फ्लेश आया. यदि आप जिओ का सिम घर बैठे पाना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. मैंने क्लिक कर दिया. मुझे अपना नाम पता, आधार नंबर देने को कहा गया. मैंने दे दिया. फिर मुझसे पूछा गया कि आप जिओ सिम कब और कहाँ चाहते हैं. पता और समय

24

टूटते बंधन

13 फरवरी 2018
0
1
4

टूटते बंधनपाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण की होड़ में जो सबसे महत्वपूर्ण बातेंसीखी गई या सीखी जा रही है उनमें जो सर्वप्रथम स्थान पर आता है वह है बंधन मुक्तहोना. जीवन के हर विधा में बंधनों को तोड़कर बाहर मुक्त गगन में आने की प्रथा चलपड़ी है. यहाँ यह विचार का या विमर्श का विषय नहीं है कि यह उचित है या अनुच

25

शब्द नगरी से अलगाव

7 सितम्बर 2018
0
1
5

व्यवस्थापकगण एवं पाठकगण शब्द नगरी ने अपने डेशबोर्ड पर जाने के लिए बहुत सारी अड़चनें पैदा कर दी हैं. हर बार शब्दनगरी खोलने पर मेल वेरिफाई करने को कहा जा रहा है और तो और यह भी संदेश मिल रहा है कि मेल नहीं मिलने की हालात में अ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए