सँभलिए ---------------
कभी कभी डर लगता है,
वो प्यार न मुझसे कर बैठे,
साथ मेरा ले भावुक होकर,
घरवालों से ना लड़ बैठे।
जो थोड़ा परिवार बचा है
वह भी टूटा जाएगा,
मैं हूँ अकेला, सदा अकेला,
कोई मुझसे क्या कुछ पाएगा।।
दोष न दे वो भले मुझे पर,
खुद को माफ करूँ कैसे?
बार - बार पछतावा होगा
मन को साफ करूँ कैसे।।
कितना मैं समझाना चाहूँ,
भावुक वह हो जाती है
प्यार के दो लब्जों को सुनकर
सागर सम रो जाती है ।।
पता नहीं ये दुख के आँसू हैं,
या कोई मजबूरी है,
गर गम ही बहकर निकल रहा है,
तब तो बहुत जरूरी है।।
अगर वहाँ से टूट गए तो फिर,
बवाल हो जाएगा,
आधी छोड़ पूरी को धावे,
कुछ भी ना बच पाएगा।।
वहाँ जुड़े रहना है उनको,
हालातों को बदलना है.
जब तक हालत बदल न जाएँ,
सँभल सँभलकर चलना है।।