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द्वंद ... जारी है.

22 अक्टूबर 2016

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द्वंद ... जारी है.


राजस्थान के चाँदा गाँव में स्नेहल एक घरेलू जाना पहचाना नाम था. गाँव के कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली स्नेहल पढ़ाई में अव्वल थी. मजाल कि उसके रहते कोई कक्षा में प्रथम आने की सोच भी लेता. इसके साथ वह थी भी बला की खूबसूरत. घर- बाहर सब उसे प्यार करते थे, पर अपनी - अपनी तरह से. लेकिन एक बात थी जो स्नेहल को सब से दूर रखती थी – उसका घमंड. उसकी खूबसूरती व अक्ल के चर्चे के कारण उसमें ऐसा स्वभाव उत्पन्न हो गया था. जब कक्षाएं बढती गईं तो वहाँ नए - नए चेहरे आते जाते रहे. कुछेक बरस बाद, ऐसा ही एक चेहरा था - आदर्श. जो पास के गाँव के किसी स्कूल में पढ़ा करता था. पढ़ाई में वह भी बहुत अच्छा था. अब वह और स्नेहल एक ही स्कूल के छात्र हो गए थे. दोनों में अव्वल आने की होड़ लग गई. परीक्षा तक तो दोनों को इंतजार करना पड़ा. परीक्षाएं समाप्त क्या हुईं कि कक्षा में चर्चाएं होने लगीं कि इस बार प्रथम कौन आएगा. आदर्श बोलता कम था इसलिए उसके दोस्त भी इस स्कूल में कम ही थे. इसलिए शोर तो स्नेहल का ही था. इंतजार पूरा हुआ और परिणाम आए - आदर्श प्रथम. अब क्या था, घमंड ने सर उठा लिया. उधर आदर्श को यह अच्छा नहीं लगा. पढ़ाई में आगे – पाछे का नतीजा, अच्छा पढ़ने की होड़ से होना चाहिए, न कि घमंड या गुरूर से. वह मन-ही-मन स्नेहल से दूर होता गया. किंतु स्नेहल का घमंड था कि कमता ही नजर नहीं आता था. कक्षा की हर परीक्षा में स्नेहल को आदर्श से कम अंक मिलते और हर बार फिर उसका सोया घमंड जाग जाता. एक अच्छी पढ़ने वाली खूबसूरत लड़की को घमंड में जलते देख आदर्श को दुख भी होता था. वह चाहता था कि स्नेहल किसी तरह अपना घमंड छोड़े, जिससे उसे भी कोई पसंद करने वाला मिल जाता. बाकी विधाओं में तो वह, अच्छी तो थी ही. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था. हाईस्कूल से इंटरमीडिएट के दौरान शीतल ने स्कूल में प्रवेश किया. पढ़ाई में वह भी अच्छी थी. खूबसूरती तो बला की नहीं, ठीक-ठीक ही थी. स्वभाव से शीतल बहुत ही मधुर थी. पढ़ाई के चलते अब स्नेहल, आदर्श और शीतल तीनों में होड़ थी. नतीजतन शीतल, स्नेहल से आगे तो आ गई, पर आदर्श को पार न पा सकी. दोनों में आए दिन होड़ रहती कि कौन बाजी मार लोगा. यही चलता रहा दोनों में होड़ होती गई और स्नेहल की ओर से लोगों का ध्यान हटने लगा. बहुतों ने सोचा अच्छा हुआ कि स्नेहल का घमंड तोड़ने कोई तो आया, उधर हालातों ने स्नेहल के घमंड को भी चकनाचूर कर दिया. एक दूसरे की बराबरी करने या यों कहें कि सार्थक प्रतिस्पर्धा के कारण दिनों-दिन शीतल और आदर्श में करीबी आती गई. दोनों की मंजिल पढ़ाई में अव्वल करने की ही थी. एक लक्ष्य की ओर बढते - बढ़ते न जाने कब वे आपसी मानसिकता को पसंद करने लगे. उनमें एक अपनापन पनपता गया, जिसकी दोनों में से किसी को खबर भी नही थी. इसका पहला एहसास आदर्श को हुआ, लेकिन उसने इस बात को उजागर करना उचित नहीं समझा. हो सकता है कि पौरुष ही इसका मुख्य कारण था. वह बात को अपने तक ही रखा रहा. हाँ इसके विपरीत कोई हरकत करने की कोशिश नहीं करता था, क्योंकि यह अपनापन उसे मंजूर था. क्या पता शीतल भी मन ही मन उसकी ओर आकर्षित हो रही हो ? भले ही वह शीतल की सहेलियों से बहनों सा बर्ताव करता लेकिन वह गलती से भी शीतल के साथ ऐसा व्यवहार करने से बचता, जिससे उसे कोई गलतफहमी न हो जाए. पता नहीं यह उसकी बचकाना हरकत थी या फिर उसे आभास हो रहा था कि इनसे मुखातिब शीतल उसकी मानसिकता को ताड़ लेगी. इंटर पूरा कर स्कूल से जाते - जाते आदर्श ने शीतल को इतना तो जता दिया कि मैं तुमसे, तुम्हारी सहेलियों के साथ सा बर्ताव नहीं कर सकता. उसकी सोच में इतना काफी था यह जताने कि लिए कि – “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” वह इससे ज्यादा खुलकर बात कहना नहीं चाह रहा था. एक मोड़ पर शीतल ने संदेश जरूर भेजा था कि तुम्हारे कारण का तो पता नहीं पर मैं तुम्हें पसंद करती हूँ. इससे आदर्श समझने लगा कि शीतल को उसकी अनुभूति का पता चल गया है. इंटर के बाद आदर्श ने कोटा मे किसी कोचिंग संस्था मे प्रवेश लिया ताकि वह अपनी आगे की पढाई जारी रख सके. भर्ती के दिन ही उसे दूसरी कतार में शीतल नजर आई. वह उससे छिपता - छिपाता रहा. किंतु ऐसा कभी संभव हुआ है कि दोनों एक ही संस्था में एक ही जगह पढ़ रहे हों और आपसी मुलाकात न हो. एक दिन ऐसा हो ही गया कि दोनों आमने सामने हो लिए. दोनों में कोई भी पहल करना नहीं चाहता था. प्यार कितना भी पुराना हो जाए सावन में फिर फलने – फूलने लगता है. ऐसा ही हुआ. फिर शीतल - आदर्श की नजदीकियाँ बढ़ने लगी. जाहिर था कि प्यार की आग दोनों की तरफ लगी थी. पर बात केवल पहल की थी. अब जब पहल हो ही गई तो दिन दूनी रात चौगुनी फलने लगी. ना जानें इस जुगलबंदी में उनने कब जीने – मरने की कसमें भी खा लीं. प्यार अब परवान चढ रहा था. पूरी कोचिंग व बाद के दौरान अलग अलग कालेजों में होने के बाद भी वे एक दूसरे के शहर जाकर मिलते रहे. जिंदगी को बहुत करीब से एहसास किया एक दूसरे के मन को पूरी तरह भाँप लिया. एक बार शीतल ने ऐसा कुछ भी बताया था कि – उनके परिवार का एक नजदीकी लड़का, उससे नजदीकियाँ बढाने की कोशिशें कर रहा था लेकिन शीतल ने उसे घास नहीं डाला क्योंकि वह अपने जीवन में आदर्श के अलावा किसी को नहीं चाहती थी. और तो और उसने यह भी कहा था कि वह एक लड़का बिगड़ैल था. दोनों में आत्मीयता इस हद तक बढ गई कि उनके बीच कोई गोपनीयता बाकी नहीं रह गई थी. हाँ नजदीकियाँ मन तक ही रही, तन पर काबू न कर सकीं. दोनों के अपने - अपने तर्क थे किंतु उनका एक ही मानना था कि मन के मिलन के बाद शादी और बाद में तन का मिलन. दोनों की अलग - अलग जगहों से पढ़ाई चल रही थी. अंतिम सेमेस्टर के दौरान - अब दौर आया - नौकरी या पोस्ट - ग्रेजुएशन की तैयारी का. आदर्श गेट की तैयारी करने लगा, जिससे दोनों की संभावनाएं साथ चलती रही. शीतल किसी भी तरह की आगे की तैयारियाँ नहीं कर रही थी. इसी समय न जाने क्यों आदर्श को लगा कि और शायद शीतल का मन धीरे धीरे आदर्श से हट सा रहा है.. कारण का कुछ पता न चल सका. परीक्षाओं के बाद और दीवाली की छुट्टियों में घर पर होने की वजह से आपसी संवाद में रुक सा गया था. शीतल की तरफ से फोन उठना बंद ही हो चुका था. और जो कारण सामने आ रहे थे वे विश्वसनीय भी नहीं लग रहे थे. आपस में कोई गंभीर संवाद नहीं हुआ. ऐसा लगने लगा कि वह अपनी राह चल पड़ी है, लेकिन कारण विशेष को कहने से बचती रही. पता नही उस पर क्या गुजरी थी कि ऐसा हो गया. दिन- रात संग जीने मरने की कसमें खाने वाली अचानक बिना किसी आपसी वजह के या कोई अन्य वजह बताए इस तरह रूठ जाए समझ में नहीं आया. पर किसी ने कुछ खास नहीं कहा. हाँ, लेकिन तब तक फासले बढ़ रहे थे. इस तरह के स्वभाव ने दोनों के बीच की खाईयों को गहरा कर दिया. अंततः एक दिन आदर्श के मन आया, कि मुझे भी कुछ और कोशिश कर आगे बढ़ना चाहिए. इसी इरादे से उसने शीतल को फिर फोन लगाया. फोन नहीं उठा. आदर्श ने फिर बार - बार कोशिश की किंतु कोई जवाब नहीं आया. अब शायद उसे लगा कि उसने अंततः शीतल को खो दिया है. वह उधर से जवाब न आता देख वह निराश हो गया. उसकी जानकारी लेने के लिए अब वह हर संभव कोशिश करने लगा . इसी दौरान शीतल के दूर के रिश्तेदार से भी बात हुई और उससे कहलवाया कि शीतल से कहे कि कम से कम एक बार बात तो कर ले. इरादे जो भी हों सही. एक दिन शीतल के फोन उठाते ही आदर्श बहुत ही खुश हुआ. लेकिन उसकी यह खुशी क्षणिक ही रह गई – जब शीतल ने उसे बताया कि अब वह उसे न फोन करे और न ही उससे संपर्क साधने की कोशिश करे. उसने यह भी कहा कि अब मैं तुमसे न मिल सकती हूँ न बात कर सकती हूँ, अब तुम मुझे फोन मत किया करो. क्योंकि अब हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा – “मैं तुमसे और बात तक करना नहीं चाहती” और फोन रखा गया.. यह तो बम का धमाका था, आदर्श के लिए. जो उसकी जिंदगी और जिंदगी में सब कुछ था, वही तो लुट गया था. और आश्चर्य यह कि वही तो लूट गया था. उसके तो होश फाख्ता हो गए. समझ में नहीं आया कि आखिर यह क्या हो रहा है और क्या हो गया है. यहाँ वहाँ से पता चला कि उसके साथ अब कोई और है. जो सुना उससे ऐसा लगा कि शायद कभी शीतल ने कहीं जिक्र भी किया था कि वह आदर्श से दूर होने वाली है लेकिन आदर्श से यह बात छुपाए रखी. कुछ आपसी मित्रों ने भी बात को सँभालने की कोशिश की लेकिन हाथ कुछ न आया . बहुतेरी कोशिशों के बाद जब अगली बार फोन उठा तो उसने बताया कि उसकी जिंदगी में अब कोई और है इसलिए सारे पुराने किस्से दफन कर दिए जाएं. आदर्श ने जानना चाहा कि वह खुशकिस्मत शख्स है कौन- सुनने पर कि वह वही पुराना विगडैल लड़का है जो कभी नजदीकियाँ बढ़ाने की कोशिश करता था – आदर्श बिफर गया. उसने चीख कर कहा – “उस के लिए – जिसे तुम दिन में पचास गालियाँ देती थी कि किसी काम का नहीं है...नालायक है – अब उसके लिए तुम मुझे नकार रही हो”. उधर से आवाज आई देखो वह जैसा भी है – अब मेरी जिंदगी में है. मैं उसके बारे में तुमसे कुछ सुनना नहीं चाहती. बातों का लहजा कुछ ऐसा था कि जब मैं तुम्हारे पीछे भाग रही थी तो तुम थे कि मुझसे दूर भागते जा रहे थे. इतनी दूर कि मेरे पाँव व मन थक गए थे. जब मैं और भाग न सकी तो तुम्हें छोड़ दिया. एकाकी हो गई .. उस वक्त, इसने मेरा साथ दिया – हाथ थामा .. अब वह मेरा है और मैं उसकी. तुमने तो मुझे नकार ही दि.या था. अच्छा है हम- तुम अब अलग हो जाएं और अलग ही रहें. आदर्श को समझ ही नहीं आया कि शीतल किस समय की बात कर रही है लेकिन उसे यह अच्छी तकह समझ में आ गया कि उसने रास्ते और हमसफर बदल लिए हैं. शीतल ने जाहिर कर ही दिया कि अब वह किसी और के साथ है और आदर्श उससे संपर्क करने की कोशिश न करे. ऐसा कहा जा सकता है कि शीतल ने अब आदर्श को दूध की मक्खी की तरह से निकाल फेंका. इससे आदर्श की जिंदगी नरक हो गई. उसका जीना हराम हो गया. हालात बिगड़ने लगे ... डर था कहीं कोई गलत कदम न उठा ले. लेकिन समय, हर मर्ज की दवा, ने आदर्श को सँभाला. फिर भी वह शीतल को भुला तो नहीं पाया. अपने प्रति किए बर्ताव के लिए वह शीतल को सजा देने पर उतारू हो गया. वह दिन आदर्श की जिंदगी का एक ऐसा दिन था जो हर दिन याद आता है. आज इतने बरसों बाद जब घर से शादी की बात चलती है, तो हर खाली वक्त शीतल की याद सताती है. एक तरफ पौरुष और एक तरफ चाह द्वंद चलता रहता है. शीतल ने तो अलग रास्ता अपना ही लिया था. कभी कभार तो दिल करता है कि शीतल को सबक सिखाया जाए ताकि वह भी उसकी तरह तड़पे – यह तो बदले की भावना थी. पर भूलना तो संभव हो ही नहीं रहा था. समाज में आदर्श के चाहने वाले जितने भी लोग थे, सबने उसे समझाने की कोशिश की. किंतु उस पर सदमा इतना भारी था कि उससे शीतल भूली ही नहीं जाती थी. हमेशा उससे बदला लेने की भावना से वह पीड़ित होता रहा. सबने समझाया कि सच्चा प्यार पाने में नहीं, देने में है, यदि तुम शीतल से सच्चा प्यार करते हो, तो उसे खुश रहने की दुआएँ दो. लेकिन उस तड़पते दिल को यह रास नहीं आता था. कहते हैं कि प्यार अंधा होता है... अब लगता है कि आदर्श अब भी प्यार के उसी दायरे में समाया हुआ है. कई बार वह औरों के कहने पर अपने आप को समझाने की कोशिश भी करता है फिर ऐसी हालातों में किकर्तव्य विमूढ़ आदर्श यही सोचता फिरता है कि इसका हल कहां से लाया जाए... द्वंद जारी है.. देखें कब थमेंगा. ---------------------------------------------

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मन दर्पण

14 फरवरी 2017
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मेरी नई पुस्तक मन दर्पण का कवर पेज प्रस्तुत है. पुस्तक अप्रेल 2017 तक प्रकाशित हो जाएगी.

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सँभलिए

19 फरवरी 2017
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सँभलिए --------------- कभी कभी डर लगता है, वो प्यार न मुझसे कर बैठे, साथ मेरा ले भावुक होकर, घरवालों से ना लड़ बैठे। जो थोड़ा परिवार बचा है वह भी टूटा जाएगा, मैं हूँ अकेला, सदा अकेला, कोई मुझसे क्या कुछ पाएगा।। दोष न दे वो भले मुझे पर, खुद को माफ करूँ कैसे?

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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग

7 मई 2017
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एक पुस्तक की प्रूफ रीडिंग सबसे पहली बात - “प्रूफ रीडर का काम पुस्तक में परिवर्तन करना नहीं है, केवल सुझाव देने हैं कि पुस्तक में क्या कमियां है और उनका निराकरण कैसे किया जाए. अच्छे प्रूफ रीडर पुस्तक उत्कृष्टता बढ़ाने के लिए भी सुझाव दे सकते

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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण का आवरण

9 मई 2017
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ISBN 978-81-933482-3-1 गूगल सर्च कर, ऑर्डर कर सकेंगे. अभी प्री-सेल शुरु है. पुस्तक 20 मई से 1 जून के बीच प्रकाशित होने की उम्मीद है.

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पुस्तक प्रकाशन

22 मई 2017
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पुस्तक प्रकाशन पुस्तक प्रकाशन हर रचनाकार, चाहे वह कहानी कार हो, नाटककार हो या समसामयिक विषयों पर लेख लिखने वाला हो, कवि हो या कुछ और, चाहेगा कि मेरी लिखी रचनाएं पुस्तक का रूप धारण करें. हाँ शुरुआती दौर में लगता है कि यह किसी के लिए

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निर्णय ( भाग - 1)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग -1)बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओंके विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एमए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँअक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्

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निर्णय ( भाग - 2)

2 जून 2017
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निर्णय ( भाग - 2 ) रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजनातक पहुँचाए। डर भी था कि संजना उसकी बात से नाराज हो गई तो वह उसे हमेशा के लिए हीखो देगा। वह अजब पशोपेश में पड़ा हुआ था।कॉलेज के वार्षिकोत्सव में रंजना ने कई कार्यक्रमोंमें भाग लिया था । एक नाटिका में

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मन दर्पण

2 जून 2017
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मेरी दूसरी पुस्तक मन दर्पण 25 मई 2017 को प्रकाशित हो चुकी है. पाठकगण गूगल पर - ISBN 978-81-933482-3-9खोज कर ई बुक या पेपरबैक आर्डर कर सकते हैं.ईबुक की कीमत रु.100 तथा पेपरबैक की कीमत रु.175 रखी गई है.पेपरबैक पर रु 60 प्रति पुस्तक का अतिरिक्त डाक खर्च लगेगा जो

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एक पौधा

5 जून 2017
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पर्यावनण दिवस 5 जून के अवसर पर...एक पौधा.मधुवन मनमोहक है,चितवन रमणीय है,उपवन अति सुंदर हैऔर जीवन से ही प्रदुर्भाव है इन सबका.फिर जब जीवन के उपवन से,मधुवन के चितवन तक,हर जगह‘वन ‘ ही की विशिष्टता है.तो क्यों न हम वन लगाएँ ?आईए शुरुआत करें,और लगाएँ....एक पौधा.......

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निर्णय

23 जून 2017
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बी एड में अलग अलग कॉलेजो से आए हुए अलग अलग विधाओं के विद्यार्थी थे । सबकी शैक्षणिक योग्यताएँ भी समान नहीं थीं । रजत इतिहास में एम ए था । उसे लेखन का शौक था और वह बहुत अच्छा वक्ता भी था । उसके लेख व कविताएँ अक्सर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । प्रिया ने बी

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संप्रेषण और संवाद

26 अगस्त 2017
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संप्रेषण और संवाद संप्रेषण और संवाद आपके कानों में किसी की आवाज सुनाई देती है. शायद कोई प्रचार हो रहा है. पर भाषा आपकी जानी पहचानी नहीं है. इससे आप उसे समझ नहीं पाते. संवाद तो प्रसारित हुआ, यानी संप्रेषण हुआ, प्राप्त भी हुआ, पर संपूर्ण नहीं हुआ क्योंक

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Laxmirangam: ये कैसा दशहरा

3 अक्टूबर 2017
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ये कैसा दशहरा ये कैसा दशहराआज मेरे देश में ये क्या हो रहा है.दहशत भरी है हवा में,डर लग रहा है,जगह जगह यहाँ तो रक्तपात हो रहा है. कहीं इस देश मेंइस दशहरा में रावण की जगह,शायद, राम तो नहीं जल रहा है.पता नहीं कब से,हर दशहरे रावण जल रहा है

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डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव.

2 नवम्बर 2017
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डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव. उस दिन मेरे मोबाईल पर फ्लेश आया. यदि आप जिओ का सिम घर बैठे पाना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें. मैंने क्लिक कर दिया. मुझे अपना नाम पता, आधार नंबर देने को कहा गया. मैंने दे दिया. फिर मुझसे पूछा गया कि आप जिओ सिम कब और कहाँ चाहते हैं. पता और समय

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टूटते बंधन

13 फरवरी 2018
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टूटते बंधनपाश्चात्य सभ्यता के अनुसरण की होड़ में जो सबसे महत्वपूर्ण बातेंसीखी गई या सीखी जा रही है उनमें जो सर्वप्रथम स्थान पर आता है वह है बंधन मुक्तहोना. जीवन के हर विधा में बंधनों को तोड़कर बाहर मुक्त गगन में आने की प्रथा चलपड़ी है. यहाँ यह विचार का या विमर्श का विषय नहीं है कि यह उचित है या अनुच

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शब्द नगरी से अलगाव

7 सितम्बर 2018
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व्यवस्थापकगण एवं पाठकगण शब्द नगरी ने अपने डेशबोर्ड पर जाने के लिए बहुत सारी अड़चनें पैदा कर दी हैं. हर बार शब्दनगरी खोलने पर मेल वेरिफाई करने को कहा जा रहा है और तो और यह भी संदेश मिल रहा है कि मेल नहीं मिलने की हालात में अ

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