मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,,
और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे।
मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो ,
निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,,
शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था ।
जैसे प्यास से व्याकुल, कोई पक्षी पानी ढूंढती है,
किसी घर के छत पर किसी जंगल में,,
ठीक उसी प्रकार मैं, तुम्हारे अंदर अपने लिए
प्रेम ढूंढती रहीं......।।
सारिका सलोनी