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मेरे डायरी लिखने का क्रम

14 सितम्बर 2024

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,,
और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे।
मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो ,
निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,,
शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था ।
जैसे प्यास से व्याकुल, कोई पक्षी पानी ढूंढती है,
किसी घर के छत पर किसी जंगल में,,
ठीक उसी प्रकार मैं, तुम्हारे अंदर अपने लिए
प्रेम ढूंढती रहीं......।।
    


सारिका सलोनी

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मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

वाह बहुत खूबसूरत पंक्तियां लिखी है आपने 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏🙏

15 सितम्बर 2024

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मेरे डायरी लिखने का क्रम

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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मैंने लिखा कि, अब तुम मेरे नहीं हो,, और ये लिखते हुए, मेरे हाथ थरथरा उठे। मानो ! मेरे पैरों तले ज़मी निकल गया हो , निकल गया हो जैसे, जिस्म से जान,, शरीर सुना पड़ा और मन व्याकुल था । जैसे प्यास से

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