(प्यार शब्द है बहुत छोटा है लेकिन इसकी गहराई बहुत ही विस्तृत है। इसके विस्तार को समझने के लिए मनुष्य को अपने जीवन में भावनाओं को नियंत्रण करके अपनी आंतरिक जीवन की इच्छाओं को प्रकट करना होता है।प्रेम शब्द के ढाई अक्षर को रहीम ने इतने सुंदर तरीके से प्रकट किया है। "पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।" इन शब्दों की अहमियत सागर की गहराई से भी अधिक है। जिसे समझने वाले बहुत ही कम लोग है लेकिन इस समय प्यार के संबंध को लोगों ने एक व्यापार एक अश्लील व्यवहार बना लिया है जिसमें लोग शादी के रिश्ते को प्रेम संबंधों से हटकर, दहेज के रुप में प्रेम के संबंधों को सौदा करने लगे हैं। यही कारण है कि इस समय लोगों के रिश्ते कच्चे धागे की तरह टूटने लगा है। लोग रिश्तों से ज्यादा रूपयों को अहमियत देने लगे हैं। जब इस तरह की खबरें कलम की नोक पर आकर अखबार के पन्नों पर छपती हैं तो अंदर ही अंदर बहुत बड़ी ग्लानि होती है।) प्यार के नाम का रूतबा लोगों के दिलों में जिस कदर फैला है वह आज के समय में प्यार न रहकर एक ख़तरनाक बीमारी का रूप ले लिया है। हर बच्चे के दिल और दिमाग में प्यार को तुच्छ शब्द समझकर प्यार के बिना जीवन को अधूरा समझने की भूल कर रहे हैं। इसका उदाहरण आज के स्कूलों में मिल जाते हैं जब कम उम्र के बच्चे भी बायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड का खेल खेलते हैं। इस खेल में लड़के लड़कियों को एक उपभोग की वस्तु मानकर उसकी भावनाओं के साथ खेलते हैं और एक समय ऐसा आता है जब उसकी जिंदगी एक गहरी खाई और कुंए के बीच रह जाती है और वह अपनी हंसती मुस्कुराती सी जिंदगी को बर्बाद होती हुई समझती है। कुछ घटनाओं में तो बच्चे इतने बड़े निर्णय ले लेते हैं कि उन्हें अपनी जिंदगी में दर-दर भटकना पड़ता है। या उनके माता-पिता के द्वारा लड़का या लड़की की जान ले ली जाती है और प्रेम मातम में बदल जाता है। इस तरह की अधिकतर घटनाएं आज के बच्चों के बीच जाति-पाति की अनभिज्ञता है क्योंकि आज के बच्चे जाति-पाति जैसे सामाजिक दायरों से दूर रहते हैं। लेकिन उनके माता-पिता जातिवादी मानसिकता कूट-कूटकर भरी होती है। जब बच्चे अन्तर्जातीय प्रेम या विवाह का निर्णय ले लेते हैं तो उस समय कोई एक परिवार की जातीय असहमति देखने को मिल जाती है और इसका परिणाम उनके प्रेम बंधन को तोडना ही होता है।
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