ये कैसा सितम है
किसी चेहरे से आईना बेख़बर है
इक उम्र दहलीज पर रुकी है
इक जहर है जिसमें असर कम है
अक्सर छू लेते हैं दिल को उसके खामोश चेहरे
उसकी नीयत मे फरेब हर तरफ है
मुद्दतों तलाशता रहा जिसे मंदिर मे
वो पत्थर किसी रास्ते में इधर उधर है
अजीब इल्ज़ाम की पोटली खोलते हैं वो
कहते हैं हर रात पर दिन का असर है
इक अर्सा बीता उनको ये बताने मे
कोई रिश्ता है तुझसे जो सबसे बेख़बर है
ये कैसा सितम है
किसी चेहरे से आईना बेख़बर है...