मै एक दिन सहरा ना बन जाऊं
जिस तरह अब बढ़ रही है प्यास मेरी
मै कोई दरिया ना पी जाऊं
इक मुद्दत से ढक रखा है आईना
अब देखूं जो मैं कहीं डर ना जाऊं
संभालना होश मुश्किल है साहिल पर
आती जाती लहरों से लड ना जाऊं
हर रात काटता रहा ग़म ए हिज्र में मैं
उजालों को देखूं तो कहीं जल ना जाऊं
मै एक दिन सहरा ना बन जाऊं....