मुमकिन है की मै समझाने से समझ जाऊं
कोई आईना हूं, जी करता है तुझ में उतर जाउं..
इक अरसे से बन्द है मेरे घर मे इक कोठरी
अंधेरा है धुंआ है बोलो किधर जाउं..
राह तलाशी है बन्द आँखों से कोई
इक तरफ सहरा है फिर दरिया है जिधर जाउं..
आओ मिले वहां जहां खत्म होती है दुनिया
मुक्कमल जहां से कयामत तक गुजर जाउं..
तुम्हारी खामोशी से वाकिफ हूं मैं विनय
बोलो इश्क मे वो रंगत कहाँ से लाऊँ..
समझ सको तो समझना मेरी जानाँ
दरिया हूं,
समन्दर से ना मिलूँ तो कहाँ जाऊँ...
मुमकिन है की मै समझाने से समझ जाऊं
कोई आईना हूं, जी करता है तुझ में उतर जाउं... ❤️