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मेरी दुनिया

22 मई 2022

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पिछले कहीं दिनों से दर्द ने मेरी कमर किराये पर ली है। जब मै सुबह उठता हु तो दर्द खोली मे नहीं होता है। उसका कुछ बिखरा हुवा सामान होता है। जो मुझे महसूस करता रहता है की दर्द फिलहाल तो कमरे मे नहीं है पर दोपहर तक वो आ जायेगा। 
और वो अपना पैनासा मुह लेकर दोपहर मे मेरे पास आता है और कमर के कमरे की चाबी मांगता है। मै भी उसे दे देता हु अपने हाथ से वहा तक जाने की चाबी। 
आखिर गलती तो मेरी ही है मुझे ही उसे वो रूम किराये पर नहीं देना चाहिए था। 
दर्द का बर्ताव मेरे लिए बहोत ही खडूस है। 
उसे ये कतही पसंद नहीं की मै आराम से बैठकर टीवी देखु। या बैठकर घंटों तक कुछ लिखता रहु। ना..! उसे तो मेरा कहीं बैठना ही पसंद नहीं आता। 
अभी जब बैठकर मै ये लिख रहा हु तो वो अपने खोली से चिल्ला रहा है। कह रहा है की रात का एक बजा है ये कोई वक्त है लिखने का..? 
हमेशा की तरहा मै उसे नजरअंदाज़ कर रहा हु। 
पर ऐैसा कितने दिनों तक चलेगा। कल शर्मा जी बोल रहे थे की तुम्हारा किरायदार मोहल्ले को बहोत हलाकान करता है उसका कुछ करो, खदेड़ निकालो उसे वहा से। नहीं तो बाद मे बहोत मुश्किल आयेगी। 
ये किरायेदार बाद मे निकलते नहीं है उल्टा हमारे कमरे को अपना ही कमरा वो लोग बताते है। 
कब्जा..! हा कब्जा कर लेगा ये दर्द तुम्हारी कमर पर
अब मुझे एक ही डर सताये जा रहा है की कहीं शर्मा जी की बात सच ना हो
Monika Garg

Monika Garg

दर्द की सुंदर व्याख्या कृपया मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10086366

24 मई 2022

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