सुबह की पहली झंकार हो तुम वो बारिश की सुहानी शाम हो तुम मेरी उलझनों भारी ज़िन्दगी में किसी सुलझे धागे समान हो तुम... अश्क भले हो नैन में पर मेरे चेहरे की मुस्कान हो तुम यूं तो चल देती मैं कब के यहां से पर मेरे रुकने का एक ठहराव हो तुम मेरी इस खाली-सुनी सी ज़िन्दगी में उम्मीदों भरा आसमान हो तुम तुमको सोचती चौबीसों पहर जैसे मेरा कोई जरूरी काम हो तुम Facebook, Whatsapp, Insta के इस जमाने में मेरा वो चिट्ठी वाला प्यार हो तुम रेस्त्रां, कैफे के इस दौर में मेरा वो गली के नुक्कड़ वाला चाय हो तुम हुनर नहीं मुझमें तुमको रिझाने की शहर में पली बढ़ी देहातन जैसे लड़की की पर जान हो तुम... कह डालती अपनी दिल की हर इक बात तुमसे पर तुम्हे खुद से खो देने का एक अनसुना अहसास हो तुम दोस्त भले हो कई मेरे पर हर दोस्तों से सबसे खास हो तुम दोस्त से ना प्यार करने की कसमें खाई थी अब उन टूटे कसमों के कसूरवार हो तुम नहीं पता तुम्हें कितना चाहती मैं वरना कह देती मेरे कायनात हो तुम, मेरे कायनात हो तुम...