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मकान

श्रीलाल शुक्ल

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11 मई 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9788171785599

नारायण एक सितारवादक है। जीविका के लिए वह परिवार को दूसरी जगह छोड़कर अपने पुराने शहर में आता है और यहीं से मकान की तलाश शुरू होती है। इस दौरान उसका सितार से साथ छूटने लगता है; और अब वह जिनके साथ जुड़ता है उनमें मकान बाँटनेवाला अफ़सर है, कर्मचारी-यूनियन का नेता बारीन हालदार है, पुरानी शिष्या श्यामा है, वेश्या-पुत्री सिम्मी है और वे तमाम तत्त्व हैं जो जिंश्दगी के बिखराव को तीखा बनाते हैं। इस संघर्ष, शोषण और अव्यवस्था के दौर से गुजश्रते हुए तीक्ष्ण प्रतिक्रियाएँ व्यक्त होती हैं: ‘मजशक देखा तुमने ? हम आसमान में उपग्रह उड़ा सकते हैं पर इस निगम के सीवेजश् के लिए मशीनों का जुगाड़ नहीं कर सकते। वहाँ सीवेजश् की सफ़ाई के लिए तो बलि के बकरे चाहिए, पर बिस्कुट बनाने के लिए यहाँ नयी से नयी मशीनें मौजूद हैं...’ ‘जैसे कुछ तांत्रिक लोग शराब पीने से पहले माँ काली के नाम पर दो-चार बूँदें जश्मीन पर छिड़क देते हैं; वैसे ही हाउसिंग की पूरी-की-पूरी स्कीम गटकने से पहले चतुर लोग हरिजनों के नाम पर दस-बीस प्लॉट निकाल देते हैं...’ उपन्यास का अंत सर्वथा अप्रत्याशित मोड़ पर होता है। ‘मकान’ यशस्वी कथाकार श्रीलाल शुक्ल की बहुप्रशंसित कृति है। वस्तुतः संगीत की पृष्ठभूमि में कलाकार के जीवन की आकांक्षाओं, जिश्म्मेदारियों, विसंगतियों और तनावों को केंद्र बनाकर लिखा गया हिंदी में अपनी तरह का यह पहला उपन्यास है। 

mkaan

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