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मन में कैद

4 फरवरी 2024

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ना कोई ताला है 
ना कोई पिंजरा है 
तुम तो सिर्फ  अपने 
मन में ही कैद हो 
ये जरूरी नहीं कि 
कि ऊंचे आकाश में 
पंख खोल उड़ जाओ  
पर कम से कम  
इतनी तो उन्मुक्त बनो 
कि आजाद हवाओं को  
अपनी सांसों में तुम 
जी भर भरने पाओ | 

तुम ये असहनीय 
पीड़ा जो सहती हो 
पर कभी किसी से 
ना कुछ कहती हो 
ये जरूरी नहीं है कि 
अपनी तकलीफों को 
चीखो और चिल्लाओ
पर कम से कम  
इतनी तो उन्मुक्त बनो 
कि अपनी तकलीफें 
कम से कम तुम 
खुद को कहने पाओ | 

तुम अगर चाह लो तो 
क्या नहीं कर सकती 
पर तुम करती नहीं 
और डरती रहती हो 
जरूरी नहीं है कि 
पूरी दुनिया तुम्हारी 
काबिलियत जाने 
पर कम से कम 
इतनी तो उन्मुक्त बनो 
इतना तो कर लो 
कि अपनी नज़रों में 
तुम उठने पाओ | 


ना कोई ताला है 
ना कोई पिंजरा है 
तुम तो सिर्फ  अपने 
मन में ही कैद हो 
ये जरूरी नहीं कि 
कि ऊंचे आकाश में 
पंख खोल उड़ जाओ  
पर कम से कम  
इतनी तो उन्मुक्त बनो 
कि आजाद हवाओं को 
अपनी सांसों में तुम 
जी भर भरने पाओ | 

 -तीषु सिंह ‘तृष्णा’
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रचनाएँ
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काव्य संग्रह, जो संकलन है भावनाओं और ज़िंदगी के तजुर्बों से जुड़ी कविताओं का...
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ना कोई ताला है ना कोई पिंजरा है तुम तो सिर्फ अपने मन में ही कैद हो ये जरूरी नहीं कि कि ऊंचे आकाश में पंख खोल उड़ जाओ पर कम से कम इतनी तो उन्मुक

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