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हे ईश्वर !

4 फरवरी 2024

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हे ईश्वर ! आपने जो मुझे दिया उसके लिए 
बहुत-बहुत शुक्रिया | 
आज ये कविता जो मैंने लिखी है मेरा लक्ष्य 
सिर्फ एक ही  है | 
मेरे मन में छपे और इस पन्ने पर लिखे अक्षरों 
को आप पढ़ सकें | 
और जब मैं अपनी इस कविता को पढूँ तो 
आप सुन सकें | 
हे ईश्वर ! आपने जो मुझे दिया उसके लिए 
बहुत-बहुत शुक्रिया | 
मेरी समझ से मुझे जो भी अच्छा मिला मुझे 
बहुत ख़ुशी मिली | 
मेरी समझ से मुझे जो बुरा मिला उससे बहुत 
अच्छी सबक मिली | 
हे ईश्वर ! आपने जो मुझे दिया उसके लिए 
बहुत-बहुत शुक्रिया |  

- तीषु सिंह ‘तृष्णा’
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रचनाएँ
सीख ही सबक
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काव्य संग्रह, जो संकलन है भावनाओं और ज़िंदगी के तजुर्बों से जुड़ी कविताओं का...
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2024 जंक्शन

4 फरवरी 2024
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धक्-धक् करती रेल हम जीवन अपनी पटरी है पटरी पर गाड़ी अपनी बस चलती रहती है कभी ये बाएं मुड़ती है कभी ये दाएं मुड़ती है पर गाड़ी तो पटरी पर बस चलती ही रहती है कभी लहर

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दोस्त

4 फरवरी 2024
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सुबह गुज़र गई है दिन अभी ढला नहीं और शाम आई नहीं तजुर्बा हमें भी तो कोई कम नहीं पर बुजुर्गों वाली वो खास बात अभी आई नहीं बीते चुके दौर ने इतना दिखा दिया&nbs

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कलम की स्याही

4 फरवरी 2024
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मैं लेखक वही लिखने को पन्ने भी वही पर मैंने अपने कलम की स्याही का रंग बदल दिया पहले जो कलम कोरे पन्नों पर कल्पनाएं सजाती थीं अब उन्हीं पन्नों पर यथार

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मेरी चाह

4 फरवरी 2024
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मेरी चाह ऐसे जीवन की है जैसा जीवन मेरे आँगन के पेड़ की अथाह पत्तियों का है … हवाएं चाहें गर्म हों या हों सर्द मदमस्त झूमती रहती है कड़ाके की धुप हो या हो बेतहाशा बारिश&nbsp

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मन में कैद

4 फरवरी 2024
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ना कोई ताला है ना कोई पिंजरा है तुम तो सिर्फ अपने मन में ही कैद हो ये जरूरी नहीं कि कि ऊंचे आकाश में पंख खोल उड़ जाओ पर कम से कम इतनी तो उन्मुक

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दुनिया और दुनियादारी

4 फरवरी 2024
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बड़ी अजीब है ये दुनिया अजीब-सी है दुनियादारी आधी दुनिया में फैली है भयंकर स्वार्थ की बीमारी स्वार्थ तो है ही भ्रम भी है अनंत काल तक जीने का खूबसूरत सा वहम भी है लोभ म

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हे ईश्वर !

4 फरवरी 2024
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हे ईश्वर ! आपने जो मुझे दिया उसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया | आज ये कविता जो मैंने लिखी है मेरा लक्ष्य सिर्फ एक ही है | मेरे मन में छपे और इस पन्ने पर लिखे अक्षरों को आप पढ़

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हे शिव-शंकर !!

8 फरवरी 2024
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सुख की खातिर मैं भटकी थी यहां-वहां पर हे शिव-शंकर सुख तो तेरे में साथ में जब भी नाम तुम्हारा जपती हूँ तो सुख सुनती हूँ अपनी ही आवाज़ में | सुकून की ख़ातिर भटकी थी

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