तन्हाइयों में अक्सर मुलाकात हो रही है
रूठे हुए हैं फिर भी हर बात हो रही।
करते हैं प्यार इतना मुझे अब समझ में आया
बरसों से जो ना की थी अब दिन रात हो रही है।
ओढ़ लो सच्चाई की चादर अपने जिस्मों पर
देख नहीं रहे हो अंगारों की बरसात हो रही है
बड़ी मुश्किल है पहचानना मनोज
अब तो इंसानों में भी कई जात हो रही है।
बीते हुए पल वो गुजरे हुए जमाने
अब याद क्या करना इक नई शुरुआत हो रही है।