हमारे देश में विश्वास को भी लोग अंधविश्वास मानते है, और आधुनिकता और विज्ञान तो और भी उन्हें जहर की भांति हमारे समाज में फैला दिया है।
उन्हें क्या? पता उन अंधविश्वास में भी जिंदगी जीने के लिए अच्छाई छिपी होती है, पर आधुनिकता की इस होड़ ने सब उल्टा पुल्टा कर दिया है।
अब जैसे पहले के लोग पेड़ की पूजा करते थे जिससे हमें शुद्ध हवा मिलती थी पर विज्ञान और आधुनिकता ने कहा ये तो अंधविश्वास है पेड़ की पूजा करना तो दिखिए।
आज पेड़ की पूजा बंद करके मुँह को ढक कर जीने के लिए खुद भी मजबूर हैं और हमारी पीढ़ी भी।
अब जैसे हमारे दादी नानी के ज़माने में अगर घर से बाहर जाना होता था तो दही चीनी खा कर ही जाना होता था।
इसमें भी हमारी भलाई छिपी होती थी,पर आधुनिकता की होड़ में इसे भी अंधविश्वास कहा जाता है।
अब आधुनिकता को कैसे समझा या जाय की ये अंधविश्वास नही है।
दही चीनी इस लिए खिलाया जाता था की गर्मी के मौसम में अगर घर से बाहर जाएँ तो हमें प्यास न लगे क्योंकि पहले कोल्ड्रिंक्स का जमाना नही था तो गर्मी में हमारे पेट को शीतलता कैसे मिलता।
हमें प्यास न लगे हमारी तबियत न खराब हो पर आधुनिकता के इस दौड़ में इसे अंधविश्वास कहा जाता है कैसे उनको समझाया जाय आप ही बताओ।
अब जैसे इसे भी आधुनिकता और विज्ञान अंधविश्वास मानती है पहले लोग घर के आगे नीबूँ मिर्ची लटकाते थे और लोग समझते थे ये अंधविश्वास है।
पर उन्हें कैसे समझाये की ये अंधविश्वास नही है ये नजर लगने से भी नही रोकती है इसका कुछ और कारण है। नीबूँ मिर्ची में कुछ ऐसे तत्त्व पाये जाते हैं जिससे हमारे घर में कीड़े मोकोड़े घर में प्रवेश नही करें क्यों की उस वक्त गुडनाइट और ऑलआउट का जमाना नही था तो वो घर के सामने नीबूँ मिर्ची लटका कर रखते थे पर आधुनिकता और विज्ञान ने इसे अंधविश्वास कह कर उसे फैला दिया और उसे ही लोग सच मनाने लगे क्यों की जो दिखता है।
उसे ही सच मना जाता है न जबकि अगर हमें उसके सच के बारे में पता होगा तो हम उसे अंधविश्वास नही समझेंगे न।
और बहुत कुछ है पर इतना ही फिर कभी आज इतना ही सही जिंदगी है तो लिखना भी है बढ़ना भी है पढ़ना भी है।सही बात है न जिंदगी जीने के लिए।
अंधविश्वास फैलाने की वजह हमारी सोच भी है।
अंधविश्वास केवल अनपढ़ की देन नही है।
पढ़े लिखे की भी देन है।
जिसे हम जानते और मानते हैं बस बोलते नही हैं।