शीर्षक --गलियां
मोहब्बत की गलियों से,
जब भी किसी को गुजरते देखता हूँ,
तो अपनी मोहब्बत की पुरानी,
वही गलियां याद आ जाती है।
दिल मचल सा जाता है।
मोहब्बत की गलियों में गुजरने के लिए,
और तेरी याद चुपके से,
मुझे मोहब्बत की वही पुरानी गलियों में,
खींच कर लेकर चली जाती है,
कितना भी रोकता हूँ,
मोहब्बत की गलियों में खुद को,
जाने से पर तेरी याद तो,
तुझसे भी जिद्दी है,
न मुझे लेकर चली ही जाती है,
मोहब्बत की गलियों में,
और हम तेरी याद में उन मोहब्बत,
की गलियों में जा कर एक बार,
फिर से अपनी मोहब्बत को जी लेता हूँ,
मोहब्बत की गलियां तेरी याद जो दिला,
जाती है तू पास नही हो कर भी कितनी,
पास आ जाती है जब भी मोहब्बत की,
गलियों से गुजरता हूँ तो ऐसा लगता है,
कितनी प्यारी थी कभी हमारी भी मोहब्बत,
की गलियां जहाँ से हम दोनों गुजरा,
करते थे अपनी मोहब्बत की प्यारी,
सी गलियों से अब तो हम भी तन्हा,
और हमारी मोहब्बत की गलियां भी,
तन्हा सी हो गई है जो बस यादों,
में याद आ जाती है अपनी मोहब्बत,
की गलियों से जब हम दोनों गुजरा,
करते थे।।