छोड़ कर अपने प्यारे शहर को,
छोड़ कर अपने न्यारे शहर को।
यूँ ही तन्हा जी रहे हैं,
अब तो अपनों से भी दूर रह कर,
यूँ ही जिंदगी जी रहे हैं।
दूसरे शहर में दर बदर,
की जिंदगी जी रहे हैं।
कुछ मज़बूरी थी,
कुछ लाचारी थी,
कुछ सपनों के खातिर,
कुछ बेचारी थी।
अपने शहर से दूर जाने की,
वरना किसे शौक होता है,
अपने प्यारे शहर को छोड़कर जाने का।
पैसों के ख्वाहिश होती है,
सपनों की गुजारिश होती है,
छोड़ कर अपने प्यारे शहर,
दिखावे की फरमाइश होती है।
इसलिए अपने प्यारे शहर को छोड़कर,
जाने की जरुरत होती है।
वरना किसे शौक होता है,
अपने प्यारे शहर को छोड़कर रहने का।
अपने प्यारे शहर से जब दूर रहते हैं तो,
कितनी बातें याद आती है,
कितनी रातें रुला जाती है,
कितना कुछ बदल जाता है,
कितनी आदतें भूला दी जाती हैं।
छोड़ कर अपने प्यारे शहर को,
यूँ ही तन्हा जीते हैं।
कितना कुछ छूट जाता है,
कितना कुछ टूट जाता है,
कितना कुछ बिखर जाता है,
कितना कुछ सिमट जाता है।
छोड़ कर अपने प्यारे शहर को,
यूँ ही तन्हा जीते हैं।
कितना कुछ पाते हैं,
कितना कुछ खोते हैं,
कुछ खुशियों के लिए,
कितना कुछ गाँवते है।
ये दर्द आखिर किस किस,
को हम बता पाते हैं,
खुद ही सहते हैं,
सबको हँसाते हैं,
खुद ही चुपके चुपके,
खुद ही रोते हैं।
पर ये दर्द किसी को,
कहाँ बता पाते हैं।
छोड़कर अपने प्यारे शहर को,
यूँ ही तन्हा जीते हैं।
आज अपने प्यारे शहर की,
अनकही बातें।
जो अक्सर याद आ जाती है,
जब भी अपने प्यारे शहर से,
मज़बूरी हो या खुशी में,
अपने प्यारे शहर से जब,
खुद की दूरी होती है तो,
अपने प्यारे शहर की याद तो आ ही जाती है न।।