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पहाड़ और बादल

1 जून 2016

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एक प्रेम कहानी सुनो

पहाड़ और बादल की

दो प्रेमी पागल की


एक वक़्त था

बदल पंख था

पहाड़ अंग था

दोनों उन्मुक्त उड़ा करते थे

स्वेच्छा से कहीं भी आसन गढ़ा करते थे

ख़ुशी के दिन थे

दोनों अपने आप में लीन थे   


पेड़ - पौधे, जीव - जंतु हुए परेशान

भगवान से कर शिकायत मांगे समाधान 

देवताओं ने निकाली एक युक्ति

देनी थी फरियादी को कष्ट से मुक्ति 


पहाड़ के पंख,बादल के अंग

अलग कर दिए गए 

पहाड़ अब उड़ नहीं सकता था 

बादल वहीँ ठहर नहीं सकता था


वे परिस्थिति से हताश न हुए 

अलग किये जाने से निराश न हुए

मिलन की प्यास बाकी रखी 

दीदार की आस बाकी रखी


आज भी उन दोनों को तुम रोते देख सकते हो

बादल को पहाड़ पर टूट सिसकते देख सकते हो 

हवा के वेग से बादल कहीं भी चले जाये

बेबस खड़े पहाड़ से मिलने की जतन में

उसे बरसते देख सकते हो

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दर्द

31 मई 2016
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वो निर्णय मेरा था सूत्र परिणय मेरा थाक्रोध भी मेरा आक्रोश भी मेरा थाइसीलिए कोई शिकायत नहींकोई ग़िला कोई शिक़वा नहींवो दर्द मेरा था बोझिल सा तन सर्द मेरा था

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पहाड़ और बादल

1 जून 2016
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एक प्रेम कहानी सुनोपहाड़ और बादल कीदो प्रेमी पागल कीएक वक़्त थाबदल पंख थापहाड़ अंग थादोनों उन्मुक्त उड़ा करते थेस्वेच्छा से कहीं भी आसन गढ़ा करते थेख़ुशी के दिन थेदोनों अपने आप में लीन थे   पेड़ - पौधे, जीव - जंतु हुए परेशानभगवान से कर शिकायत मांगे समाधान देवताओं ने निकाली एक युक्तिदेनी थी फरियादी को कष्ट

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दिसंबर २०१५ बाढ़ से जूझता दक्षिण भारत

2 जून 2016
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गंगा जब उतरीं धरती परशिव ने संभाला वेगआज कोई नहीं शिव यहाँ शहर शहर डूबा गाँव गाँव डूबा यह अफरा तफरी यह तबाही देख

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काश के कभी ऐसा हो

4 जून 2016
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जाने तुम्हें पता है भी के नहीं इतने अरसों मेंतुम्हें समझा है भी के नहीं अपनी इच्छा जताने को तकलीफ़ होती है बड़ी मुझको कितना मुश्किल है बताना सारी बातें हर घडी तुझको      मैं बोलूं न और तुम समझ लो तो कैसा हो      काश के कभी ऐसा हो कितने महीने हो गए देखे तुझको कब आओगे बोलो मुझको हर बार क्यूँ बुलाना होता

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अाहों में अब वो ज़ोर ना रहा

2 जुलाई 2016
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मज़लूम लाचार है मुल्ज़िम के खैरख्वाह हज़ार हैंबिदके क़ानून वालों की अब ख़बर कौन ले खड़े कान बंद, खुली नज़र मौन रहेबहरों को जगा सके वो शोर ना रहा अाहों में अब वो ज़ोर ना रहा

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