एक प्रेम कहानी सुनो
पहाड़ और बादल की
दो प्रेमी पागल की
एक वक़्त था
बदल पंख था
पहाड़ अंग था
दोनों उन्मुक्त उड़ा करते थे
स्वेच्छा से कहीं भी आसन गढ़ा करते थे
ख़ुशी के दिन थे
दोनों अपने आप में लीन थे
पेड़ - पौधे, जीव - जंतु हुए परेशान
भगवान से कर शिकायत मांगे समाधान
देवताओं ने निकाली एक युक्ति
देनी थी फरियादी को कष्ट से मुक्ति
पहाड़ के पंख,बादल के अंग
अलग कर दिए गए
पहाड़ अब उड़ नहीं सकता था
बादल वहीँ ठहर नहीं सकता था
वे परिस्थिति से हताश न हुए
अलग किये जाने से निराश न हुए
मिलन की प्यास बाकी रखी
दीदार की आस बाकी रखी
आज भी उन दोनों को तुम रोते देख सकते हो
बादल को पहाड़ पर टूट सिसकते देख सकते हो
हवा के वेग से बादल कहीं भी चले जाये
बेबस खड़े पहाड़ से मिलने की जतन में
उसे बरसते देख सकते हो