पहाड़ और बादल
एक प्रेम कहानी सुनोपहाड़ और बादल कीदो प्रेमी पागल कीएक वक़्त थाबदल पंख थापहाड़ अंग थादोनों उन्मुक्त उड़ा करते थेस्वेच्छा से कहीं भी आसन गढ़ा करते थेख़ुशी के दिन थेदोनों अपने आप में लीन थे पेड़ - पौधे, जीव - जंतु हुए परेशानभगवान से कर शिकायत मांगे समाधान देवताओं ने निकाली एक युक्तिदेनी थी फरियादी को कष्ट