जाने तुम्हें पता है भी के नहीं
इतने अरसों में
तुम्हें समझा है भी के नहीं
अपनी इच्छा जताने को तकलीफ़ होती है बड़ी मुझको
कितना मुश्किल है बताना सारी बातें हर घडी तुझको
मैं बोलूं न और तुम समझ लो तो कैसा हो
काश के कभी ऐसा हो
कितने महीने हो गए देखे तुझको
कब आओगे बोलो मुझको
हर बार क्यूँ बुलाना होता है तुम्हें
कभी तो आश्चर्य चकित करो मुझको
इंतज़ार की इन्तहा होने न पाये और तुम आ जाओ तो कैसा हो
काश के कभी ऐसा हो
दूरी कुछ कदमों की तो नहीं
सैकड़ों मीलों का फासला है अब तो
लम्बी बातों का कारवां गुम गया है जैसे कहीं
चुप्पी और ख़ामोशी का सिलसिला चल पड़ा है अब तो
कुछ भी टूटने न पाये और तुम्हारी पुकार आ जाये तो कैसा हो
काश के कभी ऐसा हो