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पद, पैरवी और पुरस्कार

24 दिसम्बर 2017

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पद, पैरवी और पुरस्कार का आपस में घनिष्ठ नाता है । पद की प्रतिष्ठा होती है इसलिए पद की लालसा में मनुष्य पैरवी करने से गुरेज नहीं करता पर पैरवी के लिए पैसे की जरूरत होती है अन्यथा किसी मंत्री-संत्री से पैरवी में पैसे के बदले में कुछ खातिरदारी कर पद प्राप्त किया जा सकता है । यह खातिरदारी किस रूप में करनी होगी यह मंत्री जी पर निर्भर करता है । अगर आप पुरूष राज है तो आपको मंत्री जी के बीवी, बाल और बच्चों के कपड़े तक धोना पड़ सकता है साथ ही उनके यहाँ नौकरी गिरी का काम करना पड़ेगा सो अलग । अगर आप महिला है तो पता नहीं आप को इज्जत भी दाँव पर लगानी पड़ सकती है अन्यथा आपकी पैरवी अधूरी रह जाएगी । हालांकि आज कल पैरवी के तौर-तरीकों में भी बदलाव आने लगे है ।

पुरस्कार का भी पद से नाता है। इसके लिए आपको जुगाड़ लगाना पड़ सकता है । जिसे शुद्ध रूप में पैरवी कहा जाता है । पुरस्कार में बवाल हर जगह होती है । चाहे वह नोबेल पुरस्कार, भारत रत्न, साहित्य अकादमी हो या किसी विभाग द्वारा दिया गया पुरस्कार । सब जगह पुरस्कार पाने के रूप बदल रहे हैं । हालांकि उसकी प्रक्रिया पुरी जरूर होती है पर मन में शंका रह जाती है कि पुरस्कार मिलेगी या नहीं ? हाँ, अगर साहेब यानि बॉस चाहे तो पुरस्कार मिलने की संभावना बढ़ जाती है । बहुतायत पुरस्कार तो उन्हीं लोगों को दी जाती है जिनके ऊपर निर्णायक मंडली का हाथ हो ।

पुरस्कार न मिलने वालों का भी कोई मलाल होता है । वह अगले बार पुरस्कार पाने की जुगाड़ में लग जाता है । असली मलाल तो उस व्यक्ति को होता है जिसके नम्बर वन यानि प्रथम पुरस्कार नहीं प्राप्त होता है । वह विरोध का स्वर पहले तो नहीं, पुरस्कार पाने के बाद करते हैं, क्योंकि पुरस्कार देते समय बड़े-बड़े अधिकारी होते हैं । इतना सम्मान तो वे रखते ही हैं । पुरस्कार वितरण के बाद जब सभी अधिकारी चले जाते हैं तब अन्य लोगों के सामने अपनी मन की भड़ास निकालते हैं । भड़ास भी ऐसा जिसमें जमकर भड़ास निकालना कह सकते हैं । वे यह तो कहते हैं कि पुरस्कार वितरण में धांधली हुई है पर यह नहीं बताते हैं कि कहाँ पर धांधली होती है । जैसे कोई नेता किसी दंगे के दोषियों के पकड़ जाने पर कहता है कि वह निर्दोंष है पर दोषी कौन है यह नहीं बताते ।

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रचनाएँ
jphans
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हिन्दी युवा रचनाकार एवं ब्लॉगर । ब्लॉग का नाम शब्द क्रांति।
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ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊ जरा?

19 मार्च 2016
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ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?किस तरह ठोकरे खाकर पाषाण की तरह हूँ खड़ा ।आँधी आई, तुफान आया, फिर भी घुट-घुट कर हूँ पड़ा ।ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा ?लाजिमी सोच-सोच में अभी मैं जिंदा हूँ ।बातों को सुन-सुन के कातिल की तरह शर्मिदा हूँ ।गर्दिश-ए-शर्मिंदगी को कैसे भगाऊँ जरा ।ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊँ जरा

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आओ बदल ले खुद को थोड़ा

19 मार्च 2016
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बड़ी-बड़ी हम बातें करते,पर कुछ करने से हैं डरते,राह को थोड़ा कर दें चौड़ा,आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।ख्वाब ये रखते देश बदल दें,चाहत है परिवेश बदल दें,पर औरों की बात से पहले,क्यों न अपना भेष बदल दें ।चोला झूठ का फेंक दें आओ,सत्य की रोटी सेंक लें आओ,दौड़ा दें हिम्मत का घोड़ा,आओ बदल लें खुद को थोड़ा ।एक

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19 मार्च 2016
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होली आई रे होली आई।

20 मार्च 2016
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होली आई रे होली आई ।पहला होली उनका संग मनाई।जो गिर पड़े है पउआ चढ़ाई।पकड़ के उनका ऐसा नली मे गिराई।जिसका गंध कोई न सह पाई।होली आई रे होली आई ।दूजे होली उनका संग मनाई।जो फ़ूहड़ फ़ूहड़ दिन-रात गाना बजाई।बहू-बेटी देखकर सीटी बजाई।पकड़ के उनका ऐसा बंदर बनाई।जिसका रूप मां-बाप न पहचान पाई।होली आई रे होली आई ।तीजे

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हमारा नया वर्ष आया है।

23 मार्च 2016
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आत्मीयता का विश्वास लेकर ।मधुरता का पैगाम लेकर ।दरिद्रता का अन्न लेकर ।आज धरा पर आया है ।हमारा नया वर्ष आया है ।            नवजीवन में मुस्कुराहट लेकर ।            खिले मन सा सुमन लेकर ।            वनिता का सिंदूर लेकर ।            भाई-भाई का प्रेम लेकर ।            आज धरा पर आया है ।            हमा

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हमारा नया वर्ष आया है।

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मुझे कौन पूछता था, तेरी बंदगी से पहले

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मुझे कौन पूछता था, तेरी बंदगी से पहलेमुझे कौन पूछता था, तेरी बंदगी से पहले,मैं तुम्हीं को ढूँढता था, इस जिन्दगी से पहले,मैं खाक का जरा था और क्या थी मेरी हस्ती,मैं थपेड़े खा रहा था ,जैसे तूफाँ में किश्ती,दर-दर भटक रहा था, तेरी बंदगी से पहले,मैं इस तरह जहाँ में, जैसे खाली सीप होती,मेरी बढ़ गयी है कीम

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मानव मस्तिष्क से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ

10 अगस्त 2016
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समाज में ऐसे व्यक्तित्व का विकास करना जो समतामूलक स्वस्थ समाज की रचना के लिए अति आवश्यक हैं । ऐसे व्यक्ति ही अपनी संकीर्ण सीमा से ऊपर उठकर समाज, देश और विश्व स्तर पर अपनी सेवाएं दे सकते हैं । ऐसे व्यक्तियों की स्मृति जितनी अच्छी होगी उतनी ही ज्ञान ग्रहण करने की क्षमती बढ़ जाएगी । जितना ज्ञान होगा,

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